________________ श्रुतरत्नरत्नाकर जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ,। अहम्मं कुणमाणस्स अहला जंति राइओ // 40 // जस्सऽत्थि मच्चुणा सक्खं जस्स व ऽत्थि पलायणं / जो जाणे न मरिस्सामि सो हु कंखे सुए सिया // 41 // .: दंडकलिअंकरिता वच्चंति हु राइओ य दिवसा य / आउसं संविलंता गयावि न पुणो नियत्तंति // 42 // जहेह सीहो व मियं गहाय मच्चू नरं णेइ हु अंतकाले / नतस्स माया व पिया व भाया कालंमि तंमिं सहरा भवंति / / 43 // जीअं जलबिंदुसमं संपत्तीओ तरंगलोलाओ। सुमिणय-समं च पिम्मं जं जाणसु तं करिज्जासु // 44 // संझराग-जलबुब्बुओवमे जीविए य जलबिंदु:चंचले। जुव्वण य नइ वेग-संनिभे पावजीव ! किमियं न बुज्झसे // 45 // अन्नत्थ सुआ अन्नत्थ गेहिणी परिअणोऽवि अन्नत्थ / भूअबलिव्व कुटुंब पक्खित्तं हयकयंतेण // 46 // जीवेण भवे भवे मिलियाइ देहाइ जाइ संसारे। ताणं न सागरेहिं कीरइ संखा अणंतेहिं / / 47 // नयणोदयंपि तासिं सागरसलिलाओ बहुयरं होइ / लियं रुअमाणीणं माउणं अन्नमन्नाणं / / 48 // जं नरए नेरइया दुहाइ पावंति घोर-णताइ / तत्तो अणंतगुणियं निगोअमज्झे दुहं होइ / / 49 // तंमिवि निगोअमझे वसिओजीव ! विविहकम्मवसा / विसहंतो तिक्खदुहं अणंत पुग्गलपरावत्ते // 50 //