________________ भवभावना (6) सह पित्तधारिणीओ पणवीसं दस य सुक्क धरणीओ। इय. सत्त सिरसयाई नाभिप्पभवाई पुरिसस्स // 416 // तीसूणाई इत्थीण वीसहीणाई होति संढस्स / नव पहारूण सयाइं नव धमणीओ य देहम्मि // 417 / / मुत्तस्स सोणियस्स य पत्तेयं आढयं वसाए उ / अद्धाढयं भणंती पत्थं मत्थुलय वत्थुरस // 418 // असुइमल पत्थछकं कुलओ कुलओ य पित्तसिंभाणं / सुक्कस्स अद्धकुलओ दुटुं हीणाहियं होज्जा // 419 // एकारस इत्थीए नव सोयाई तु होति पुरिसस्स / इय किं सुइत्तणं अढिमंसमलरुहिर संघाए // 420 // को कायसुणयभक्खे किमिकुलवासे य वाहिखिक्त य / देहम्मि मच्चुचिहुरे सुसाणठाणे य पडिबंधो 1 // 421 // बत्थाहार विलेवण तंबोलाइणि परदव्याणि / होति खणेण वि असुईणि देहसम्बन्धपत्ताणि // 422 / / असुहाणिवि जलकोदववत्थप्पमुहाणि सयलवत्थूणि / सकारवसेण सुहाई होंति कत्थइ खणद्धेणं // 423 / / इय खणपरियत्तंते वोग्गलनिवहे तमेव इह वत्थु / . मन्नामि सुहं पवरं जं जिणधम्मम्मि उवयरइ // 424 // तो मुत्तूण दुगुंछं सम्मायकरं कयंवविप्पव्व / / देहं च वझवत्थं च कुणह उपयारयं धम्मे // 425 // . पउदसरज्जू उड्ढाओ इमो वित्थरेण पुण लोगो। कत्थई रज्जं कस्थवि य दोन्नि जा सत्त रज्जूओ // 426 //