________________ भवभावना(८) उववायसभा वररयणरुइलयं जम्मठाणममराणं / तीसें सज्झे मणिपेढियाएँ रयणमयसयणिज्जं // 350 // तत्थुववज्जइ देवो कोमलवरदेवदूसआरिए / अंतोमुहुत्तमज्झे संपुन्नो जायए एसो // 351 // अह सो उज्जोयंतो तेएण दिसाओ पबररूवधरो। सुत्तविउद्धव्व खणेण उढिओ नियइ पासाई // 352 // सामाणियसुरपमुहो तत्तो सव्वोऽवि परियणो तस्स / आगंतुं अभिणंदइ जयविजएण कयंजलिओ // 353 // इंदसमा देविड्ढी देवाणुपिएहिं पाविया एसा। अणुभुजंतु जहिच्छं समुवणयं निययपुन्नेहिं // 354 // अह सो विम्हियहियओ चिंतइ दाणं तवं च सीलं वा / किं पुव्वभवे विहियं मए इमा जेण सुररिद्धी ? // 355 // इय उवउत्तो पेच्छइ पुव्वभवं तो इमं विचिंतेइ / किं एत्थ मज्ज किच्चं पढमं? ता परियणो भणइ // 356 / / अट्ठसयं पडिमाणं सिद्धाययणे तहेव सगहाओ। कयअभिसेया पूएह सामि ! किच्चाणिमं पढमं // 357 // अह सो सयणिज्जाओ उट्ठइ परिहेइ देवदूसजुयं / मंगलतूरखेहिं पढंतसुस्वंदवंदेहिं // 358 // हरयम्मि समागच्छइ करेइ जलमज्जणं तओ विसइ / अभिसेयसभाए अणुपयाहिणं पुव्वदारेणं // 359 / अह आभिओगियसुरा साहाविय तह विउव्वियं चेव / मणिमयकलसाईयं भिंगाराई य उवगरणं // 360 //