________________ 137 भवभावना (8) वड्ढंते उण अत्थे वड्ढइ इच्छावि तहवि कह दूरं / जह मम्मणवणिओ इव संतेऽवि धणे दुही होइ // 284 // लद्धपि धणं भोत्तुं न पावए वाहिविहुरिओ अन्नो / पत्थोसहाइनिरओत्ति केवलं नियइ नयणेहिं // 285 // जइ पुण होइ न पुत्तो अहवा जाओऽवि होइ दुस्सीलो। तो तह झिज्झइ अंगे जह कहिउं केवली तरइ // 286 // अन्ने उ जुवाणा संजुत्ता रजप्पलकोमलतलेहिं / सोणनहसयल लक्खणल-विखयकुम्मुन्न्य पएहि // 287 // सुसिलिट्ठगूढगुप्फा एणीजंघा गइंदहत्थोरू / हरिकडियला पयाहिणसुरसलिलावत्त नाभीया // 288 // घरवइरवलियमज्झा उन्नयकुच्छी सिलिट्ठमीणुयरा / कणयसिलायलवच्छा. पुरगोउर परिहभुयंदडा // 289 // वरवसहुन्नयखंधा चउरंगुलकंबुगीव कलिया य / सर्दूलहणू बिंबीफलाहरा ससिसमकवोला // 290 // कुंददलधवलदसणा विहगाहिवचंचुसरलसमनासा / पउमदलदीहनयणा अणंगधणुडिल भूलेहा // 291 // रइरमणदोलयसरिससवण अद्धिंदुपडिमभालयला / भरहाहिवछत्तसिरा कज्जलघणकसिणमिउकेसा // 292 // संपुन्नससहरमुहा पाउसगेज्जत मेहसमघोसा। सोमा ससिव्व सूरा व सप्पहा कणयमयरुइरा // 293 // पाणितलाइसु ससिसूरचक्कसंखाइ लक्खणोवेया। वज्जरिसह संघयणा समचउरंसा य संठाणा // 294 / /