________________ उही श्री -- श्री गोडीपार्श्वनाथाय नमः। श्रीनेमि अमृत-देव-गुरुचरणेभ्यो नमः / WH श्रा श्रुतरत्नरत्नाकरः॥। // 1 उत्तरज्झयणस्स चउत्थं अज्झयणं॥ असंखयं जीविय मा. पमायए, जरोवणीयस्य हु नत्थि ताणं / एवं वियाणाहि जणे पमत्ते, किण्णू विहिंसा अजया गहिन्ति // 1 // जे पावकम्मेहि धगं मणूसा, समाययन्ती अमइं गहाय / पहाय ते पासपयट्टिए नरे, वेरागुबद्धा नरयं उवेन्ति // 2 // तेणे जहा सन्धिमुहे गहीए, सकम्मुणा किच्चइ पावकारी / एवं पया पेच्च इहं च लोए, कडाण कम्माण न मोक्नु अस्थि // 3 // संसारमावन्न परस्स अट्ठा, साहारणं जं च करेइ कम्मं / कम्मस्स ते तस्स उ. बेयकाले, न बंधवा बंधवयं उति // 4 // बित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमंमि लोए अदुवा परत्था / दीवप्पणढे व अणंतमोहे, नेयाउयं दठ्ठ मद्रुमेव // 5 //