________________ काउं सिद्धग्गहणं बहुवत्तव्वयपएसु सव्वेसु / इह केवलमग्गहणं जइ ते तं कारणं वच्चं // 236 // अहवा विसेसियं चियं जीवाभिगमम्मि एतमप्पबहुं / दुविह त्ति सव्वजीवा सिद्धासिद्धादिया तत्थ // 237 // सिद्धगइंदियकाए जोए वेए कसायलेसा य / णाणुवओगाहारग भासा य सरीर चरिमे य // 238 // अंतोमुहत्तमेव य कालो भणिओ तओवओगस्स। साईअपज्जवसिओ त्ति णस्थि कत्थइ विणिद्दिट्ठो // 239 // जह सिद्धाणऽइयाणं भणियं साईअपज्जवसियत्तं / तह जइ उवओगाणं हवेज्ज तो होज्ज ते जुगवं // 240 // कस्स व णाणुमयमिणं जिणस्स जइ होज्ज दो वि उवओगा। णूणं न सि होंति जुगवं जओ निसिद्धा सुए बहुसो // 241 // ण वि अभिणिवेसबुद्धी अम्हं एगंतरोवओगम्मि। . तह वि भणिमो न तीरइ जं जिर्णमयमण्णहा काउं // 242 // मोत्तूण हेउवायं आगममेत्तावलंबिणो होउं / सम्ममणुचिन्तणिज्जं किं जुत्तमजुत्तमेयन्ति ? // 243 // अहवा ण सव्वसो च्चिय सव्वं जिणमयमहेउयं भणियं / किनु अणुअत्तमाणो अण्णत्तं हेउओ भणइ ? // 244 // जेणं किर सुक्कबीएसु नोवलब्भन्ति जीवलिंगाई / तो के भणंति बीआ जोणिब्भूया ण सज्जीवा // 245 // भण्णइ जह सव्वन्नूवएसओ जीवलिंगरहिया वि / घेप्पइ मही संजीवा तह बीआ किं न घेप्पंति ? // 246 // आयारप्पणिहीए तणरुक्खसबीअंगा सजीव त्ति / सबियाइचित्तमंतो छज्जीवनिकाय अक्खाया // 247 // 311