________________ धणसेट्ठीविव गुरुणो पुत्ता, इव साहवो भवो अडवी / सुयमंसमिवाहारो रायगिहं इह सिवं नेयं 18 / 3 / 69 जह अडविनयरनित्थरणपावणत्थं तएहि सुयमंसं / भुत्तं तहेह साहू गुरुण आणाए आहारं 18 / 4 / 70 भवलंघणसिवपावणहेउं भुज्जति ण उण गेहीए। वण्णबलरूवहेउं च भावियप्पा महासत्ता : 18571 वाससहस्सं पिं जई काऊणं संजमं सुविउलं पि / अंते किलिट्ठभावो न विसुज्झइ कंडरीउ व्व . 19 / 172 अप्पेण वि कालेणं केइ जहागहियसीलसामण्णा / . साहिति निययकज्जं पुंडरीयमहारिसि व्व जहा 19 / 2173 // जोइसकरंडगं पइण्णयं // कातूण नमोक्कारं जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स / जोतिसकरंडगमिणं लीलावट्टी व लोगस्स कालण्णाणाभिगमं सुणह समासेण पांगडमहत्थं / णक्खत्त-चंद-सूरा जुगम्मि जोगं जध उवेंति // 2 // किं(?कं)चि वायग वालब्भं सुतसागरपारगं दढचरित्तं / अप्पस्सुतो सुविहियं वंदिय सिरसा भणति सिस्सो // 3 // 'सज्झाय-झाण-जोगस्स धीर ! जदि वो ण कोयि उवरोधो / इच्छामि ताव सोतुं कालण्णाणं समासेणं // 4 // अह भणति एवभणितो उवमा-विण्णाण-णाणसंपण्णो / सो समणगंधहत्थी पडिहत्थी अण्णवादीणं दिवसिय-रातिय-पक्खिय-चउमासिय तह य वासियाणं च / णिअयपडिक्कमणाणं सज्झायस्सावि य तदत्थे 56