________________ पू.आ.श्री.अमरचन्द्रसूरिश्वरजीविचरितः ॥विभक्तिविचार // निम्मलनाणपयासियवत्थुविभत्ति नमित्तुं वीरजिणं। किंचि विभत्तिवियारं वुच्छं बालावबोहत्थं // 1 // इह विभयणं विभत्ती भेयपभेया पयत्थसत्थस्स। ‘सा छब्भेया भणिया पहूहि सिरिभद्दबाहूहिं // 2 // नाम ठवणा दविए खेत्ते काले तहेव भावे य। एसो य विभतीए निक्खेवो छव्विहो होइ // 3 // नामं सन्ना ठवणा नासों दव्वं कहिज्जए धम्मी। खेत्तं गयणं कालो अद्धा भावो य धम्मो त्ति // 4 // तत्थ य नामविभत्ती जस्स अजीवस्स अहव जीवस्स। . कीरइ विभत्तिनामं जहा सियाई तियाई य ठवणविभत्ती पुण तत्थ जत्थ ता एव लिंग(गी) धाऊण / पुरओ ठाविज्जती पुत्थयपत्ताइनत्था वा // 6 // जीवाजीवसहावा दव्वविभत्ती उ कित्तिया सुत्ते / जीवा हवंति दुविहा मुत्ता संसारिया चेव . // 7 // दुविहा वुत्ता मुत्ता वि दव्वओ कालओ य नाणीहिं / पंचदस दव्वओ तत्थ तित्थसिद्धाइभेएहिं ते हुंति तित्थसिद्धा तित्थे सइ जेहिं निव्वुई पत्ता / / तित्थं च चाउवनो संघो पढमो व गणहारी // 9 // तित्थम्मि अणुप्पन्ने मरुदेवी सामिणि व्व जे सिद्धा। ते उण अतित्थसिद्धा निद्दिट्ठा दिद्रुतत्तेहिं // 10 // सत्तसु जिणंतरेसुं तित्थुच्छेए व जाइसंरणेणं।' जे पावियं सिवमग्गं सिद्धा तस्स य इमो कालो // 11 // 233 // 8 //