________________ // 132 // छउमत्थ 95 सजोगि 96 भवत्थ ९७सव्व 98 सव्वे विसेसहिया इय अट्ठाणउइपयं सव्वजियप्पबहुमिइ पयं तइयं / पण्णवणाए सिरिअभयदेवसूरीहिं संगहियं // 133 // // 2 // // 3 // पू.आ.श्रीरत्नसिंहसुरिविरचिता ॥निगोदषट्त्रिंशिका // लोगस्सेगपएसे, जहन्नयपयम्मि जियपएसाणं / उक्कोसपए य तहा, सव्वजियाणं च के बहुया ? थोवा जहन्नयपए, जियप्पएसा जिया असंखगुणा / उक्कोसपयपएसा, तओ विसेसाहिया भणिया तत्थ पुण जहन्नपयं, लोयंते जत्थ फासणा तिदिसि / छद्दिसिमुक्कोसपर्य, समत्थगोलंमि नन्नत्थ उक्कोसमसंखगुणं, जहन्नयाओ पयं हवइ किं नु / नणु तिदिसिफुसणाओ, छद्दिसिफुसणा भवे दुगुणा थोवा जहन्नयपए, निगोयमित्तावगाहणा फुसणा।। फुसणाऽसंखगुणत्ता, उक्कोसपए असंखगुणा उक्कोसपयममुत्तं, निगोयओगाहणाइ सव्वत्तो। निप्फाइज्जइ गोलो, पएसपरिवुड्डिहाणीहिं : तत्तो च्चिय गोलाओ, उक्कोसपयं मुइत्तु जो अन्नो / होइ निगोओ तम्मि वि, अन्नो निप्फज्जई गोलो एवं निगोयमित्ते, खित्ते गोलस्स होइ निष्फत्ती। . एवं निप्फज्जंते, लोगे गोला असंखिज्जा / // 4 // // 6 // // 7 // // 8 // . 195