________________ // 1 // // 2 // // 3 // // 4 // ॥जीवाभिगमसंग्रहणी॥ लद्धजयलच्छिसारो, विसमत्थनिवारणो महासत्तो / समइक्कसुसंतोसो, जयइ जिणिदो महावीरो जीवाभिगमोवंगे, नव पडिवत्तीउ हुंति जीवाणं / तासि किंपि सरूवं, निअबोहत्थं परूवेमि आइमपडिवत्तीए, दुविहा जीवा समासओ भणिआ / पढमा थावररूवा, तसा य इयरे विणिट्ठिा पुढवीआउवणस्सइ-काया थावरजिआ तिहा हुंति / अन्ने वि तिहा नेआ, तेउ वाऊ उरालतसा . जीवाण सुहुमबायर-पमुहपयाराणमेसि छण्हं पि। तेवीसदारगाहा-दुगेण तत्तं विचितेमि सरीरोगाहण संघयणं संठाणकसाय हंति तहय सन्नाओ। . लेसिदियसंघाए, सण्णी वेए अ पज्जती / दिट्ठी दंसणनाणे, जोगुवओगे तहा किमाहारे / उववाय ठिई समुग्घाय-चवण गइरागई चेव उरालतेयकम्मण-कायतिगं सुहमपुढविजीवाणं। ओगाहणां जहन्नु-कोसा अंगुलअसंखेसो संघयणं छेवटुं, संठाणमसूरचंदयं हुंडं। कोहमयमायलोहा, हवंति सन्नाचउक्कं च .. . काऊ नीला किण्हा, लेसा एगर्मिदियं फासो। वेअणकसायमरणंतिओ य तिनि अ समुग्घाया असन्निणो नपुंसग, अपजत्ता तह य हुंति पज्जत्ता / आहारसरीरिंदिय-आणापाणूहि मिच्छत्ती // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // . 165