________________ संघाडएण गंतूण आणितो सम्मणसंघवयणेणं / / सो संघथेरपमुहेहि गणसमूहेहिं आभट्ठो . // 726 / / 'तं अज्जकालियजिणो [?य] वीरसंघो तं (?उ) जायए सव्वो। पुव्वसुयक्कमधारय ! पुव्वाणं वायणं देहि' . // 727 // सो भणति एव भणिए असि[?लि]ट्ठकिलिट्ठएण वयणेणं / "न हु ता अहं समत्थो इण्डिं भे वायणं दाउं // 728 // अप्पटे आउत्तस्स मज्झ किं वायणाए कायव्वं ?" एवं च भणियमेत्ता रोसस्स वसं गया साहू // 729 / / अह विण्णविति साहू 'तं चेव सि पाडिपुच्छणं अम्हं। एव भणंतस्स तुहं को दंडो होइ ? तं मुणसु' // 730 // सो भणति एव भणिए अविसन्नो वीरवयणनियमेण / ... 'वज्जेयव्वो सुयनिण्हतो त्ति अह सव्वसाहूहि' // 731 // 'तं एव जाणमाणो नेच्छसि ने पाडिपुच्छयं दाउं / तं थाणं पत्तं ते, कह तं पासे ठवीहामो?' // 732 // बारसविहसंभोगे [य] वज्जए तो तयं समणसंघो। 'जं ने जाइज्जंतो न वि इच्छसि वायणं दाउं' // 733 // सो भणति एव भणिए जसभरितो अयसभीरुतो धीरो। "एक्केण कारणेणं इच्छं भे वायणं दाउं // 734 // . अप्पटे आउत्तो परमटे सुट्ट दाणि उज्जुत्तो। न विहं वाहरियव्वो, अहं पि न वि वाहरिस्सामि // 735 // / पारियकाउस्सग्गो भत्तट्ठितो (? ट्ठितओ) व अहव सज्झाए / नितो व अइंतो वा एवं भे वायणं दाहं" // 736 // 'बाढं' ति समणसंघो 'अम्हे अणुयत्तिमो तुहं छंदं / देहि य, धम्मो (? म्मा)वाहं तुम्हं छंदेण घेच्छामो // 737 // 118