________________ श्रीपूर्वाचार्यविरचिता ॥दीवसागरपन्नत्ती॥ पुक्खरवरदीवटुं, परिक्खिवइ मानुसोत्तरे सेले। पायारसरिसरूवे, विभयंतो माणुसं लोयं सत्तरिसिक्कवीसाइं, जोयणसयाई सो समुव्विद्धो / चत्तारि य तीसाइं, मूले कोसं च ओगाढो // 2 // दस बावीसाइं अहे, वित्थिनो होइ जोयणसयाई / सत्त य तेवीसाइं, वित्थिन्नो होइ मज्झम्मि // 3 // चत्तारि य चउवीसे, वित्थारो होइ उवरि सेलस्स / अड्डाइज्जे दीवे य, दो व समुद्दे अणुपरीई // 4 // तस्सुवरि माणुसनगस्स, कूडा दिसिविदिसि होंति सोलस उ। तेसि नामावलियं, अहक्कम कित्तइस्सामि // 5 // पुव्वेण तिण्णि कूडा, दक्खिणओ तिण्णि तिण्णि अवरेणं / उत्तरओ तिण्णि भवे, चउद्दिसिं माणुसनगस्स // 6 // वेरुलियमसारे खलु, तह हंसगब्भे य होति अंजणगे। अंकमये अरिद्धे, रयए तह जायरूवे य. नवमे य सिल्लप्पवहे, तत्तो फलिहे य लोहियक्खे य। वयरामए य कूडे, परिमाणं तेसि वोच्छामि // 8 // एएसि कूडाणं, उस्सेहो पंच जोयणसयाई।. पंचेव जोयणसए, मूलम्मि हुंति विस्थिण्णा // 9 // वेरुलियमसारे तिण्णि, पन्नत्तरि जोयणसयाई / मज्झम्मि अड्डाइज्जे य, सए सिहरतले वित्थिडा कूडा // 10 // एगं चेव सहस्सं, पंचेव सयाई एगसीयाई। मूलम्मि उ कूडाई, सविसेसो परिरओ होइ // 11 // // 7 //