________________ // 68 // अम्हाणमभिणिवेसो न कोइ इत्थ परमन्नहा सुत्तं / अघटतं पिव पुव्वावरेण पडिहाइ किं करिमो एअम्मि अपन्नविए उस्सुत्तं हुज्ज किं पि जइ इत्थ / मे मिच्छा दुक्कडमिह तत्तविऊ जिणो जेण सिरिमंमुर्णिचंदमुणीसरेहिं सुत्ताणमणुसरंतेहिं / सुत्तगयजुत्तिसारं रइअमिणं सपरगुणहेउं // 69 // // 70 // // 1 // // 2 // // 3 // . पू.आ.श्रीधर्मघोषसूरिविरचिता // कालसप्ततिका // देविंदणयं विज्जाणंदमयं, धम्मकित्तिकुलभवणं / . नमिऊण जिणं वुच्छं, कालसरूवं जहासुतं सुहुमद्धायरदसकोडि-कोडि छअराऽवसप्पिणुसप्पिणी / ता दुन्नि कालचक्कं, वीसायरकोडिकोडीओ . मुंडियइगाइसगदिण-कुरूनरकेसचिअमनिलजलऽ गणिणो / अविसयमुसेहजोयण-पिहुच्च पल्लमिह पलिओमं पज्जथूलकुतणुतणुसम, असंखदलकेसहरसुहमथूले / अद्धद्धारे खित्ते पएस वाससय-समय-समया अस्संख संखवासा, असंखुसप्पिणि कमा सुहुममाणं / थूलाण संखकासा, संखसमयुसप्पिणि असंखा कालाउगाइ अद्धा, दीवादुद्धारि खित्त पुढवाई / सुहुमेण मिणसु दसकोडिकोडिपलिएहिं अयरं तु सुसमसुसभा य सुसमा, सुसमदुसमा य दुसमसुसमा य / दुसमा य दुसमदुसमा-वसप्पिणुसप्पिणुक्कमओ 321 // 4 // // 5 // // 6 // // / /