________________ // // 3 // // 4 // // 5 // श्री धर्मशेखरगणिकृता ॥क्षुल्लकभवावलिः // वंदित्ता सिरिवीरं, देविंदनरिंदमहियकमकमलं / खुड्डभवाण सरूवं, आवलियाणं च वुच्छामि . . . गयमुक्कसत्तसासा, थोवो सो सगगुणो लवो भणिओ / सो सत्तहुत्तरगुणो, मुहत्तै सो तीसगुण दिवसो एगम्मि मुहुत्तम्मि उ, सगतीससया तिहत्तरुस्सासा / तेरसहस्सा लक्खं, नउयसयं ते अ दिवसम्मि पुढवाइभवेहितो, अइलहुआ तेण हुंति खुड्डुभवा / सतरभवा इगूसासे, अंसा पुण. जाण सुत्तुत्ता सत्तरसभवग्गहणा, खुड्डागा हुंति एगप्राणम्मि / तेरस चेव सयाइं; पणनवई चेव अंसाणं एगूसासस्स भवा, सत्तगुणा काउ तह य तस्संसा / सगतीससयतिहुत्तर-हरिया थोवस्स खुड्डागा अह थोवे खुड्डागा, इगसयमिगवीस सुअहरा बिति / सेसंसा तत्थ इमे, बावीससया इगुणवीसा थोवस्स उ खुड्डागा, अंसेहिँ समं तु सगगुणा विहिया / पुव्विं व तओ हरिया, एगलवे इंति खुड्डभवा अडसयमेगावन्ना, नाणीहिँ लवे खुड्डुभवा दिट्ठा / अंसाणं तु पमाणं, चउसयमिगचत्तमब्भहिया अह सत्तहुत्तरगुणा, विहिया इगलवखुड्डुभवअंसा। हरिया पुव्वं व तओ, हुंति इगमुहत्तखुड्डागा . . पणसट्ठिसहसपणसय-छत्तीसा इगमुहुत्तखुड्डभवा / एगोणवीसलक्खा, छासट्ठिसहस असीइ दिणे 312 // 7 // // 8 // // 9 // // 10 //