________________ = // 2 // - = // 3 // = // 4 // श्रीमच्चन्द्रर्षिमहत्तरसङ्कलितः - ॥पञ्चसङ्ग्रहः // // 1 // योगोपयोग मार्गणाद्वार नमिऊण जिणं वीरं सम्मं दुट्ठकम्मनिट्ठवगं / वोच्छामि पंचसंगहमेयमहत्थं जहत्थं च . सयगाइ पंच गंथा जहारिहं जेण एत्थ संखित्ता / दाराणि पंच अहवा तेण जहत्थाभिहाणमिणं एत्थ य जोगुवयोगाण मग्गणा बंधगा य वत्तव्वा / तह बंधियव्व य बंधहेयवो बंधविहिणो य सच्चमसच्चं उभयं असच्चमोसं मणो वई अट्ठ। वेउव्वाहारोरालमिस्ससुद्धाणि कम्मयगं अन्नाणतिगं नाणाणि पंच इइ अट्ठहा उ सागारो / अचक्खुदंसणाई चउहुवओगो अणांगारो विगलासन्नीपज्जत्तएसु लब्भंति कायवइयोगा। सव्वे वि सन्निपज्जत्तएसु सेसेसु काओगो. . लद्धीए करणेहि य ओरालियमीसंगो अपज्जते / पज्जत्ते ओरालो वेउव्विय मीसगो वा वि (कम्मुरलदुगमपज्जे वेउव्विदुगं च सन्निलद्धिल्ले / पज्जेसु उरलो च्चिय वाएं वेउव्वियदुगं च मइसुयअन्नाणअचक्खुदंसणेक्कारसेसु ठाणेसु। पज्जत्तचउपणिदिसु, सचक्खुसन्नीसु बारस वि इगविगलथावरेसुं, न मणो दोभेय केवलदुगम्मि / इगथावरे न वाया, विगलेसु असच्चमोसेव सच्चा असच्चमोसा, दो दोसु वि केवलेसु भासाओ। . अंतरगइकेवलिएसु, कम्मयऽनत्थ तं विवक्खाए // 5 // // 6 // = 7 // = // 1 // ) // 8 // // 9 // // 10 // .14: