________________ कयउन्नसालिभद्दा दरिद्दभावे वि पुव्वज़म्मेसु / पत्तेसु सुद्धदाणं दाऊणं सुद्धबुद्धीया // 294 // लोगच्छेरयभूयं रूवं रिद्धिं सुहं च लहिऊण / जाया महातवस्सी उत्तमपयसाहगा खिप्पं पासंगियभोगेणं वेयावच्चमिह मोक्खफलमेव / आणाआराहणओ अणुकंपाई व्व विसयम्मि // 296 // सुहतरुछायाइजुओ जह मग्गो होइ कस्सइ पुरस्स / एक्को अन्नो नेवं सिवपुरमग्गो वि इय नेओ // 297 // अणुकंपं वेयावच्च पाविओ पढमगो जिणाईणं / ... तयजत्तगो उ इयरो सदेव सामन्नसाहूणं - // 298 // ता नस्थि एत्थ दोसो पच्चक्खाए वि निरहिगरणम्मि। गुणभावाओ य तहा एवं च इमं हवइ सुद्धं // 299 // फासियं पालियं चेव, सोहियं तीरियं तहा / किट्टियमाराहियं चेव, जएज्जेयारिसम्मि उ. // 300 / उचिए काले विहिणा पत्तं जं फासियं तयं भणियं / / तह पालियं तु असई सम्मं उवओगपडियरियं // 301 / गुरुदाणसेसभोयणसेवणयाए उ सोहियं जाण / पुन्ने वि थेवकालावत्थाणा तीरियं होइ / // 302 / भोयणकाले अमुगं पच्चक्खायं ति भुंज किट्टिचयं / आराहिय पगारेहिं सम्ममेएहिं निट्ठवियं // 303 / फासियपमुहपयाणं भणियत्थाणं पि इह पुणो भणणं / मंदमइसुमरणत्थं बहुसत्थपसिद्धिओ चेव // 304 आह किमयं संते पच्चक्खेयम्मि अह असंतम्मि? जइ संते तो जुतं साहीणे चागजोगाओ // 305 308