________________ एसो अविसेसेणं दाउमसत्तो त्ति धम्मसूरीणं / दुप्पडियारत्तणओ विसेसओ पूयणिज्जाणं . // 259 // देइ विसेसेणेसिं तप्परिवारस्स वावि गुणनिहिणो / अह उवगरणं गुरुणो वि अत्थि परेसिं च तं नत्थि // 260 // तो तेसि तं पयच्छइ अह दोण्हं नत्थि तत्थ दायव्वं / लद्धिविहीणाणं चिय अह लद्धिविवज्जिया दो वि // 261 // तो गुरुणो च्चिय देयं इहरा दोसा विवेगविरहाओ / आणाभंगऽणवत्थामिच्छत्तविराहणाईया // 262 // अहऽतुच्छो पुण दोण्हं संतेऽसंते व लद्धिजुत्ताणं / लद्धीऍ विउत्ताण व तुल्लगुणाणं पि समणाणं // 263 // जइ देज्जा दरवज्जिय तो तस्स ममत्तदूसियमणस्स / अविवेइणो य धणियं सम्मं गुणभत्तिसुन्नस्स // 264 // नियमेण हति दोसा आणाभंगाणवत्थमाईया / एत्तो च्चिय भणियमिणं जयजीवहिए जीणमयम्मि // 265 // सड्डेणं सइ विभवे साहूणं वत्थमाइ दायव्वं / गुणवंताण विसेसा दिसाए तत्थ वि न जेसऽत्थि // 266 // तत्रापि येषां साधूनां वस्त्रादि नास्ति तेभ्यो देयमित्यर्थः संतं बज्झमणिच्चं ठाणे दाणं पि जो न वियरेइ / इय खुड्डगो कहं सो सीलं अइदुद्धरं धरडू ? // 267 // दिसाविवरणायाह-दीसइ जीए सीसो सेहदिसा सूरिभाइया नेया / जह एस अमुगसीसो तदंतिए बोहिलाभाओ // 268 // आभव्वावेक्खाए दिसा गिहत्थाण आगमे भणिया। . पव्वज्जाभिमुहाणं मुक्कवयाणं च नऽन्नेसि // 269 // 305