________________ // 65 // // 67. // सम्मत्तनाणचरणा, संपुनो मोक्खसाहणोवाओ / ता इह जुत्तो जत्तो, ससत्तिओ नायतत्ताणं .. इय सतसट्ठिपयाई, उच्चिणिउं विउलआगमारामा। संगहिया इत्थ मए, मंदमईणं सरणहेउं एसिं दुविहपरित्रा, दंसणसुद्धि करेइ भव्वाणं / सुद्धम्मि दंसणम्मि, करपल्लवसंठिओ मुक्खो संघे तित्थयरम्मी; सूरिसु रिसीसु गुणमहग्घेसुं / अप्पच्चओ न जेसि, तेसिं चिय दंसणं सुद्धं जे पुण इयविवरीया, पल्लवगाही सबोहसंतुट्ठा। सुबहुं पि उज्जमंता, ते सणबाहिरा नेया इय भाविऊण तत्तं, गुरुआणाराहणे कुणह जत्ते / जेणं सिवसुक्खबीयं, सणसुद्धि धुवं लहह // 68 // // 69 // // 70 // // 1 // // 2 // ॥बृहद् वन्दनकभाष्यं // इच्छा य अणुनवणा अव्वाबाहं च जत्त जवणा य / अवराहखामणा वि य छट्ठाणा हुत्ति वंदणए दुओणयं अहाजायं, किइकम्मं बारसावयं / चउसिरं तिगुत्तं च दुपवेसं एगनिक्खमणं आयारस्स उ मूलं विणओ सो गुणवओ य पडिवत्ती। सा य विहिवंदणाओ विही इमो बारसावत्ते होउमहाजाओवहि संडास पमज्जि उक्कुडियठाणे / . पडिलेहिय मुहपत्ती पमज्जिउं चरिमदेहुद्धो. उठेउं परिसंठिय कुप्परधियपट्टगो नमियकाओ। . जुत्तिविहयपच्छद्धो पवयणकुच्छा जह न होई / 208 // 4 //