________________ दुविहं पिं धम्मरयणं तरइ नरो घेत्तुमविगलं सो उ। जस्सेगवीसगुणरयणसंपया सुत्थिया अस्थि . // 140 // ता सुट्ठ इमं भणियं पुव्वायरिएहिं परहियरएहिं / इगवीसगुणोवेओ जोगो सइ धम्मरयणस्स // 141 // धम्मरयणो चियाणं देसचरित्तीण तह चरित्तीणं / लिंगाई जाइं समए भणियाई मुणियतत्तेहिं // 142 // तेसिं इमो भावत्थो नियमइविभवाणुसारओ भणिओ / सपराणुग्गहहेउं समासओ संतिसूरीहिं। . // 143 // जो परिभावइ एयं सम्मं सिद्धंतगब्भजुत्तीहिं। . सो मुत्तिमग्गलग्गो कुग्गहगत्तेसु न हु पडइ // 144 // इय धम्मरयणपगरणमणुदियहं जे मणम्मि भाति / . ते गलियकलिलपंका नेव्वाणसुहाई पावेंति // 145 // श्रीमद्हरिभद्रसूरिवरकृता ॥सम्यक्त्वसप्ततिः // दंसणसुद्धिपयासं, तित्थयरमपच्छिमं नमंसित्ता / दंसणसुद्धिसरूवं, कित्तेमि सुयाणुसारेणं दंसणमिह सम्मत्तं, तं पुण तत्तत्थसद्दहणरूवं / खइयं खओवसमियं, तहोवसमियं च नायव्वं अवउझियमिच्छत्तो, जिणचेइयसाहुपूअणुज्जुत्तो। . आयारमट्ठभेअं, जो पालइ तस्स सम्मत्तं तस्स विसुद्धिनिमित्तं, नाऊणं सत्तसट्ठिठाणाई। पालिज्ज परिहरिज्ज व, जहारिहं इत्थ गाहाओ . 202