________________ सीहवहरक्खिओ सो उड्डाहं किं पि कह वि काऊणं / किं अप्पणो परस्स य न होइ अवगारहेउ त्ति // 168 // किं इय न तित्थहाणी किं वा वहिओ न गच्छई नरयं। सीहो किं वा सम्मं न पावई जीवमाणो उ // 169 // किं वा तेणावहिओ कहिचि अहिमाइणा न खज्झेज्झा / सो ता इहं पि दोसो कहं न होइ त्ति चितमिणं // 170 // सव्व पवित्तिअभावो पावइ एवं तु अन्नदाणे वि।। तत्तो विसूइयाई न संभवंतित्थ किं दोसा - // 171 // सयमवि य अपरिभोगो एत्तो चिय एवं गमणमाई वि। सव्वं न जुझइ च्चिय दोसासंकानिवित्तीओ // 172 // अणिवित्ती वि हु एवं कह कायव्व त्ति भणियदोसाओ। आलोयणं पि अवराहसंभवाओ ण जुत्तं ति // 173 // इय अणुभवलोगागमविरुद्धमेयं न नायसमयाणं / मइविब्भमस्स हेऊ वयणं भावत्थनिस्सारं . // 174 // तम्हा विसुद्धचित्ता जिणवयणविहीइ दो वि सद्धाला। वहविरइसमुज्जुत्ता पावं छिंदंति धिइबलिणो // 175 // निच्चाण वहाभावा पयइअणिच्चाण चेव निव्विसया।। एगंतेणेव इहं वहविरई केइ मन्नति // 176 // एगसहावो निच्चो तस्स कह वहो अणिच्चभावाओ। पयइअणिच्चस्स वि अन्नहेऊभावाणवेक्खाओ // 177 // किं च सरीरा जीवो अन्नोणन्नो व हुज्ज जइ अन्नो / ता कह देहवहम्मि वि तस्स वहो घडविणासे व्व // 178 // अह उ अणन्नो देह व्व सो तओ सव्वहा विणस्सिज्जा / एवं न पुण्णपावा वहविरई किनिमित्ता भे // 179 // 108