________________ // 24 // गंभीरत्तमुदारत्तं, धीरभावो थिरत्तणं / . एवमाइ गुणग्गामं, सुट्ठ सब्भूअमब्भसे . एसो मए तुम्हमणुग्गहत्थो, हिओवएसो भणिओ महत्थो। एआणुसारेण तओ अनिच्चं, झायव्वमित्तो सयलं पि किच्चं // 25 // // 1 // // 2 // // 3 // पू.आ.श्रीमुनिचन्द्रसूरिविरचितम् . ॥धर्मोपदेशकुलकम् // भुवणजणवंदणिज्जं वंदिय दियमाणमच्छरं वीरं / धम्मोवएसलेसं समासओ किं पि जंपेमि इह भीमे भवरने सन्नाणविवन्जिओ इमो जीवो / भमिओ चिरं न पत्तो कहिं वि जिणदेसियं धम्म. ता पाविओ इह तइ संपइ विवरेण असुहकम्माणं / दहगयकच्छभगीवाससिबिबालोयणसमाणो . एसो मणकप्पियकप्पपायवो साहिओ जिणिदेहि / कल्लाणकामिणा तो जणेण एसो च्चिय विहेओ एयस्स मूलहेऊ जीवदयाई परूविओ दसहा / ता एयम्मि गुणगणे निच्चं जत्तो विहेयव्वो जह सेलाण सुमेरू सयंभूरमणो जहा जलनिहीणं / जहं चंदो ताराणं गुणाण सारा तहेह दया सच्चेण जणपसिद्धी धम्मविसुद्धी य होइ सच्चेणं / सच्चेण सुगइलाभो सच्चसरिच्छं परं नत्थि एगंतविरत्तमणा जे परदव्वावहारकरणाओ। कि तेसिमिह न सोक्खं ? को न जसो किं व कल्लाणं? // 4 // // 5 // // 7 // // 8 //