________________ एवं चामुंडिअमय उस्सुत्तं दंसिअंमए चउहा / लहिऊणं गुरुवयणं तुरियं निअबोहणट्ठाए // 18 // खरतरगच्छमूलपुरुषश्रीजिनदत्तसूरिकृतम् .. // उत्सूत्रपदोद्घाटनकुलकम् // लिंगी जत्थ गिहि व्व देवनिलए निच्चं निवासी तयं, सूत्तेऽणाययणं न तत्थ उ जओ नाणाइवुड्डी भवे निस्सानिस्स जिणिंदमंदिरदुगं तल्लाभहेडं तयं,सिद्धतम्मि पसिद्धमेव तह वी खिसंति ही बालिसा . // 1 // चेइयमढेसु जइवेसधारया निच्चमेव निवसंति / तमणाययणं जइसावगेहिं खलु वज्जणिज्जंति // 2 // उस्सुत्तदेसणाकारएहि केहिं तु वसइवासींहिं / पडिबोहि असावयचेइयं पुणो होइऽणाययणं // 3 // एयम्मि हुस्सुत्तं पुण जुवइपवेसो निसाइ चेइहरे। रयणीऍ जिणपइट्ठा पहाणं नेवेज्जदाणं च पूएइ मूलपडिमं पि साविया चिइनिवासिसम्मत्तं / गब्भापहारकल्लाणगं पि न हु होइ वीरस्स कीरइ मासविहारोऽहुणा वि साहूहिं नत्थि किर दोसो / पुरिसित्थीओ पडिमा हवंति (वहति) तत्थाइमा चउरो कंडुयसंगरियाओ न हुंति विदलंति विरुहगाऽणंतं / न य सिंचियवेराइ सच्चित्तं सिंधवो दक्खा इरिआवहियं पडिकमिय जो जिणाईण पूयणाइ पुणो। . कुज्जा इरियं पडिकमिय कुणइ कीकम्मदाणाइं . // 8 // . 12 // 4 //