________________ - || 15 // // 16 // // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // रोग-सोग-विओगाई, रे जीव ! मणुयत्तणे / अणुभूयं महादुक्खं पमाएणं अणंतसो कसाय-विसयाईया, भयाईणि सुरत्तणे / पत्ते पत्ताई दुक्खाई पमाएणं अणंतसो जं संसारे महादुक्खं, जं मुक्खे सुक्खमक्खयं / पावंति पाणिणो तं पि, पमाया अपमायओ पत्ते वि सुद्धसम्मत्ते सुत्तासुत्तनिउत्तया / उवउत्ता जं न मग्गम्मि, हा ! पमाओ दुरंतओ बाढं पढंति पाढिंति नाणासत्थविसारया / . भुल्लंति ते पुणो मग्गा, हा ! पमाओ दुरंतओ अन्नेसि दिति संबोहं निस्संदेहं दयालुया / सयं मोहहया ते वि, हा ! पमाओ दुरंतओ पंच सयाण मज्झम्मि खंदगायरिओ तहा / कहं विराहओ जाओ ? हा ! पमाओ दुरंतओ तयं वत्थं तहाहूओ खुड्डूदेवेण बोहिओ। अज्जऽऽसाढमुणी कटुं हा ! पमाओ दुरंतओ सूरी वि महुरा मंगू सुत्त-अत्थधरो थिरं / . पुरनिद्धमणे जक्खो, हा ! पमाओ दुरंतओ जं हरिस-विसाएहिं चित्तं जित्तं जए फुडं / महामुणीण संसारे, हा ! पमाओ दुरंतओ अप्पायत्तं कयं सत्तं, चित्तं चारित्तसंगयं / परायत्तं पुणो होइ, हा ! पमाओ दुरंतओ एयावत्थं तुम जाओ सव्वसुत्तो गुणायरो। .. संपयं पि न उज्जुत्तो, हा ! पमाओ दुरंतओ // 21 // // 22 // // 23 // // 24 // // 25 // . // 26 // 128