________________ // 10 // इय मा मुणसु मणेणं, तुज्झ सिरी जा परस्स आइत्ता ; ता आयरेण गिण्हसु, संगोवय विविहपयत्तेण जीविअं मरणेण-समं, उप्पज्जइ जुव्वणं सह जराए ; रिद्धी विणाससहिआ हरिसविसाओ न कायव्वो // 11 // // प्रतिसमयजागृतिकुलकम् // समए समए रे जीव ! आउयं गलइ तुह नियंतस्स / तह वि हु धम्मम्मि तुमं, मणं पि नो देसि जिणभणिए // 1 // समए समए रे जीव ! जुव्वणं गलइ चंचलं अंगं / तह वि विसयासपासा बंधं अइनिद्रं कुणसि समए समए रे जीव ! जीविआसापसत्तचित्तेणं / जं पोसियं सरीरं, तं पि. न तुह चेव साहीणं // 3 // समए समए रे जीव ! जं धणं संचियं सुहासाए / तं पि मरणावसाणे, पयं पि नो देइ तुह गमणे समए समए रे जीव ! अज्जियं जं तए असुहकम्मं / तं तिलतुसमित्तं, भुंजेयत्वं तए नूणं // 5 // समए समए रे जीव ! जं न चिंतेसि धम्ममुवउत्तो / तं नारय-तिरिय-भवाडवीइ अइदुक्खिओ भमसि समए समए रे जीव ! जं न भावेसि भावणा सययं / तं संसारऽरहट्टे, पुणरुत्तं भमसि गोणु व्व // 7 // इय-जाणिऊण रे जीव ! जिणवरिंदेहि देसिए मग्गे / . अब्भुट्ठाणं काउं, खणमवि मा काहिसि पमायं // 4 // // 8 // - 123