________________ // 660 // // 661 // // 662 // // 663 // // 664 // // 665 // पंचमम्मि अ सुहुमो अइआरो एस होइ णायव्वो।। कागाइसाणगोणे कप्पटुंगरक्खणममत्ते दव्वाइआण गहणं लोहा पुण बायरो मुणेअव्वो। अइरित्तुधारणं वा मोत्तुं नाणाइउवयारं छ?म्मि दिआगहिअं दिअभुत्तं एवमाइ चउभंगो। अइआरो पन्नत्तो धीरेहि अणंतनाणीहिं कहिऊणं कायवए इअ तेसुं नवरमभिगएसुं तु / गीएण परिच्छिज्जा सम्मं एएसु ठाणेसुं , उच्चाराइ अथंडिल वोसिर ठाणाइ वा वि पुढवीए। नइमाइ दगसमीवे सागणि निक्खित्त तेउम्मि वियणऽभिधारण वाए हरिए जह पुंढविए तसेसुं च। एमेव गोअरगए होइ परिच्छा उ काएहिं ' जह परिहरई संमं चोएइ व घाडिअंतहा (या) जोग्गो। होइ उवठावणाए तीए वि विही इमो होइ . अहिगय काउस्सग्गं वामगपासम्मि वयतिगेक्केक्कं / पायाहिणं निवेअण गुरुगुण दिस दुविह तिविहा वा उदउल्लाइपरिच्छा अभिगय नाऊण तो वए दिति / चिइवंदणाइ काउं तत्थ वि अ करिति उस्सग्गं गुरवो वामगपासे सेहं ठावित्तु अह वए दिति / एक्किकं तिक्खुत्तो इमेण ठाणेणमुवउत्ता कोप्परपट्टगगहणं व्रामकरानामिआय मुहपोत्ति / रयहरण हत्थिदंतुल्लएहिं हत्थेहुवट्ठावे पायाहिणं निवेअण करिति सिस्सा तओ गुरू भणई। वड्डाहि गुरुगुणेहिं एत्थ परिच्छा इमा वऽण्णा પs // 666 // // 667 // // 668 // // 669 // // 670 // // 671 //