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________________ // 40 // सुकयण्णुआ विणीआ रायाईणमविरुद्धकारी य / कल्लाणंगा सद्धा थिरा तहा समुवसंपण्णा // 36 // कालपरिहाणिदोसा एत्तो एक्कादिगुणविहीणा वि / जे बहुगुणसंपन्ना ते जुग्गा हुंति नायव्वा // 37 // न उ मणुअमाइएहिं धम्मेहिं जुए त्ति एत्तिएणेव। . पायं गुणसंपन्ना गुणपगरिसमाहगा जेणं . // 38 // एवंविहाण देया पव्वज्जा भवविरत्तचित्ताणं / अच्चंतदुक्करा जं थिरं च आलंबणमिमेसि // 39 // अइगुरुओ मोहतरू अणाइंभवभावणाविअयमूलो। दुक्खं उम्मूलिज्जइ अच्वंतं अप्पमत्तेहिं संसारविरत्ताण य होइ तओ न उण तयभिनंदीणं / जिणवयणं पि न पायं तेसिं गुणसाहगं होइ // 41 // गुरुकम्माणं जम्हा किलिट्ठचित्ताण तस्स भावत्थो / नो परिणमेइ सम्म कुंकुमरागो व्व मलिणम्मि .. विट्ठाण सूअरो जह उवएसेण वि न तीरए धरिउं। संसारसूअरो इअ अविरत्तमणो अकज्जम्मि . // 43 // ता धन्नाणं गीओ उवाहिसुद्धाण देइ पव्वज्जं / आयपरपरिच्चाओ विवज्जए मा हविज्जति . // 44 // अविणीओ न य सिक्खइ सिक्खं पडिसिद्धसेवणं कुणइ / सिक्खावणेण तस्स हु सइ अप्पा होइ परिचत्तो तस्स वि य अट्टझाणं सद्धाभावम्मि उभयलोगेहि। . जीविअमहलं किरियाणाएणं तस्स चाओ त्ति // 46 // जह लोअम्मि वि विज्जो असज्झवाहीण कुणइ जो किरियं / / सो अप्पाणं तह वाहिए अ पाडेइ केसम्मि // 42 // // 45 // // 47 //
SR No.004452
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages310
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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