________________ // 739 // // 740 // // 741 // ता उद्धरेमि सम्मं एयं एयस्स णाणरासिस्स / आवेदियं (उ) असेसं अणियाणो दारुणविवागं इय संवेगं काउं मरुगाहरणादिएहिं चिंधेहिं / दढमपुणकरणजुत्तो सामायारिं पउंजेज्जा जह बालो जंपंतो कज्जमकज्जं व उज्जुयं भणति / तं तह आलोइज्जा मायामयविप्पमुक्को उ आलोयणासुदाणे लिंगमिणं बिंति मुणियसमयत्था / पच्छित्तकरणमुचियं अकरणं चेव दोसाणं इय भावपहाणाणं आणाएँ सुट्ठियाण होति इमं / गुणठाणसुद्धिजणगं सेसं तु विवज्जयफलं ति लभ्रूण माणुसत्तं दुलहं चइऊण लोगसण्णाओ / लोगुत्तमसण्णाए अविरहियं होति जतितव्वं // 742 // // 743 // // 744 // ... // 16 // प्रायश्चित्तविधिपञ्चाशकम् // नमिऊण वद्धमाणं पायच्छित्तं समासतो वोच्छं / आलोयणादि दसहा गुरूवएसाणुसारेणं // 745 // आलोयण पडिक्कमणे मीस विवेगे तहा वि उस्सग्गे / तव छेय मूल अणवट्ठयाय पारंचिए चेव // 746 // पावं छिदति जम्हा पायच्छित्तं ति भण्ाई तेण / पांएण वा वि चित्तं सोहयती तेण पच्छित्तं // 747 // भव्वस्साणारुइणो संवेगपरस्स वण्णियं एयं / उवउत्तस्स जहत्थं सेसस्स उ दव्वतो णवरं सत्थत्थबाहणाओ पायमिणं तेण चेव कीरंतं / - एयं चि य संजायति वियाणियव्वं बुहजणेणं // 749 // // 748 //