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________________ [44] तरहकी अविधि करने लगे थे और संयमी कहलाते हुएभी अपनी तरफारके चैत्यादि बनानेका आरंभ समारंभ करने लग गये थे उन्होंके शिथिलाचारों को (अविधि मार्ग को, चैत्यादि बनाने के आरंभ समारंभ को) निषेध करके श्रावकों के लिये चैत्यादि बनाने का व उपयोग पूर्वक विधि सहित भावसे द्रव्य पूजा करने का विधि मार्ग बतलाया गया था. तैसे ही अभी इस हुंडाअवसर्पिणी के पंचम काल में भी बहुत साधु लोग शिथिलाचारी होकर चैत्यवासी होगये और चैत्यों में रात्रिको प्रतिष्ठा-स्नात्र महोत्सवादि करने वगैरह अनेक तरहकी अविधि करने लग गये थे उसका निषेध करके श्रावकोंके लिये विधिपूर्वक जिनराजकी मूर्तिकी पूजा करनेका बतलाया गया है. जैन शासनमें भक्तिवाले श्रावकोंके लिये अनादि कालसे जिनेश्वर भगवान्की मूर्ति की द्रव्य पूजा करने की मर्यादा चली आती है, किन्तु चैत्यवासियोंने नवीन शुरू नहीं की है. संयमी कहलाते हुए भी चैत्योंमें द्रव्य पूजा स्वयं करने लगे थे, उसीकाही निषेध करने में आया है. परन्तु श्रावकोंके लिये निषेध नहीं किया गया है, इस बातका भेद समझे बिनाही जो लोग चैत्यवासियोंने जिनराज की मूर्तिकी पूजा शुरू करने का नवीन रिवाज चलाने का कहकर पहिले जिनराजकी मूर्तिकी पूजाका अभाव बतलाते हैं, उन्होंकी बडी अज्ञानता है. इस बात का विशेष खुलासा " जिन प्रतिमा को वंदन-पूजन करने की अनादि सिद्धि" नामक आगेके लेखसे पाठकगण आपही समझ लेवेंगे.
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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