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________________ [35] हो जावें, तब किसी किसी समय पर करनेमें आती है, उसी तरह पूजाआरती-रथयात्रा प्रतिष्ठादि कार्यों के चढावे विधिवाद की तरह सब जगहपर सब मंदिरों में और सब तीर्थ क्षेत्रोंमें हमेशा करनेका रिवाज नहीं है. परंतु पर्व विशेषमें या पूजा आरती आदि क्रिया करने वालों के भाव चढजावें, देवद्रव्यकी वृद्धि करनेका लाभ लेनेकी इच्छा होवे, पर्वदिनमें भगवान्की पहिली पूजा आरती आदि के लाभको चाहना होवे, और प्रतिष्ठादि समय प्रतिमा स्थापन, ध्वजा आरोहण व कलश चढानेमें अपने द्रव्यपर से मोह छोडकरके भगवान् की भक्ति में अपना द्रव्य अर्पण करने का खास विचार होवे तब चढावा बोला जाता है, अन्यथा चढावा कभी बोला जाता नहीं. इसलिये विधिवाद के व चरितानुवाद के भावार्थ को समझे बिना और लाभालाभ का विचार किये बिनाही आरती, पूजा वगैरह के चढावों को विधिवाद के नामसे या आगम पंचांगी के नामसे निषेध करके भगवान् की पूजा-आरती वगैरहसे देव द्रव्य की वृद्धि करने का अंतराय करना आत्मार्थियों को योग्य नहीं है। 60 उत्तम पुरुषों के चरित्रों में दान, शील, तप, तीर्थ यात्रा, संघ भाक्त, जिनपूजा, शासन प्रभावना, परोपकार, गुरु सेवा, देवद्रव्य की वृद्धि, जीर्णोद्धार, अमारी घोषणा वगैरह शुभ कार्योंका उलेख होवे यो सब अनुमोदनीय और आत्म हितके लिये अपनी शक्ति के अनुसार अनुकरणीय याने अंगीकार करने योग्य होते हैं, जैसे श्रेयांस कुमार आदि के दान, विजय सेठ, विजयासेठाणी आदिको शील, द्रढपरिहारी वगैरहके तप इत्यादि उत्कृष्ट शुभ कार्य बारंबार अनुमोदनीय, शक्ति के अनुसार अनुसरणीय हैं. तैसे ही कुमारपाल महाराजा के चरित्रके ऊपरसे 18 देशमें अमारी पडह, देव गुरु की उत्कृष्ट सेवा, छ री पालते हुए तीर्थ यात्रा जाना, संघ भक्तिकरना, दीनोद्धार करना और परमात् विशेषण, देवद्रव्य की वृद्धि वगैरह कार्य बारंबार अनुमोदनीय और शक्ति के अनुसार
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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