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________________ [18] खातेमें ही जावेगा तथा किसीने भक्तिवश गुरु के सामने कुछभी द्रव्य चढाया होवे अथवा गुरुको देनेका कहा होवे तो वो द्रव्य गुरु खाते के साथ संबंध रखता है, इसलिये गुरु द्रव्य कहा जाता है. यद्यपि गुरुको द्रव्य रखने की शास्त्रोंकी आज्ञा नहीं है, तोभी उस द्रव्य से वस्त्र, पात्र, कंबलादि वस्तूएं गुरुको बहोरा सकते हैं. या गिलान (रोगी ) साधुके औषधादिक के उपचारमें खर्च करसकते हैं. इसी तरह मंदिरमें भगवान्के सामने भगवान् की पूजा आरती वगेरह भक्तिके लिये ही चढावे होते हैं वे सब भगवान्के साथ संबंध रखनेवाले होते हैं. उनसे उनका द्रव्य भगवान्को अर्पण होता है. इसलिये वो सब द्रव्य देवद्रव्यही कहा जाता है. 33 अगर कहा जाय कि जैसे शांतिस्नात्र-प्रतिष्ठादिक कार्यों में भगवान् की पूजा के लिये मिठाई बनानेमें आती है, उसमेंसे जितनी पूजामें जुरूरत पडे उतनी भगवान् को चढाते हैं और शेष बाकीरहीहोवे उसका अपन लोग भी उपयोग कर सकते हैं. तैसेही भगवान् की पूजा आरती के चढावेका द्रव्यभी भगवान् के कार्यमें खर्च करें और साधारण खातेमें रखकर मिठाई की तरह अपने या अन्य किसी के उपयोगमें लेवें तो कोई दोष नहीं है, ऐसा कहना भी सर्व प्रकार से अयोग्य ही है. क्योंकि देखो शांतिस्नात्र-पूजा–प्रतिष्ठा में जो मिठाई बनानेमें आती है, वह तो वहांपर लडके वगैरह कोई झूठी न करने पावें या मलिन शरीर, वस्त्रादिवाली स्त्री वगैरह कोई वहां जाने न पावे इसलिये अलग चौका बनवाकर सीर्फ पवित्रता शुद्धताके लियेही अपने या संघके द्रव्यसे बनाने में आती है, उसमें से जितनी भगवान् की भक्तिके लिये पूजामें चढाने में आवे उतनी भगवान् को अर्पण होती है. और शेष ( बाकी ) रही हुई अपने उपयोगमें ले सकते हैं. मगर पूजा आरतीके चढावेमें तो उनका सब द्रव्य भगवान्को अर्पण हो जाता है, इसलिये.वह सब देव द्रव्यही ठहरता है. उसमें से थोडासा अंश मात्रभी अपने उपयोगों नहीं
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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