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________________ देखनेसे तीन जगत के लोग पुष्पमाला की तरह इनकी आज्ञा मस्तकपर धारण करेंगे, चंद्र देखनेसे पृथ्वी मंडलमें सर्व भव्य जीवों के नेत्र और हृदयको आल्हाद ( हर्ष ) उत्पन्न करनेवाला होगा, सूर्य देखनेसे उनके पीछे दीप्तियुक्त भामंडलको धारण करनेवाला होगा, ध्वज देखनेसे उनके आगे धर्मध्वज चलेगा, पूर्ण कलश देखनेसे ज्ञान-धर्मादि संपूर्ण गुणयुक्त और भक्त जनोंके संपूर्ण मनोरथोंका पूर्ण करनेवाला होगा. पद्म सरोवर देखनेसे देवता इन्होंके विहारमें पैरोंके नीचे स्वर्णके कमल रचेंगे, क्षीर समुद्र देखनेसे ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि गुण रत्नोंका आधार भूत और धर्म मर्यादा का धारण करनेवाला होगा, देव विमान देखनेसे चारों निकाय के स्वर्गवासी देवों को मान्य करने योग्य और आराधन करने योग्य होगा, रत्नराशी देखनेसे केवल ज्ञान होने पर समवसरण के तीनगढ के मध्य भागमें विराजमान होनेवाला होगा, निधूम अग्नि देखनेसे भव्य जीवोंके कल्याण करनेवाला और मिथ्यात्वरूप शीतको नाश करनेवाला होगा. - अब सर्व स्वप्नोंकासाररूप फल कहते हैं, हे राजन् ! इन चौदह स्वप्नोंके देखनेसे आपका पुत्र चौदह राजलोक के मस्तकपर बैठनेवाला होगा, अर्थात् सर्व कर्म क्षय करके मोक्षमें जानेवाला होगा. . इस प्रकारसे कल्पसूत्रकी कल्पलता-सुबोधिकादि सर्व टीकाओंमें ऐसे ही भावार्थवाला पाठ समझ लेना. 4 अब देखिये पर्युषणापर्वमें प्रायः सर्व जगहपर कल्पसूत्र टीकाओं सहित बांचने में आता है, उसमें ऊपरका विषय संबंधी पाठ भगवान् महावीर प्रभुके जन्म अधिकार बांचने के दिन सुनने में आता है. उस दिन वोर प्रभुके ऊपर मुजब गुणोंकी स्मरणरूप भाक्ति के लिये और देवद्रव्यकी वृद्धिके लिये स्वप्न उतारे जाते हैं, इसलिये उनका द्रव्य वीतराग प्रभुकी भाक्तके सिवाय अन्य खातेमें खर्च करना सर्वथा अनुचित है,
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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