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________________ 29 लल्लूभाई भाईचन्द 30 मेता पीतांबर केवलचंद 31 भागीरथ छाजेड 32 सोभागमल मेहता 33 मिसरीलाल पालरेचा 34 मनालाल कोठारी 35 अमोलक खोडीदान 36 लखमीचंद अमरचंद . ऊपर का विनंती पत्र जब छपकर प्रकट हुआ तब विद्याविजयंजीने दीर्घ विचार किये बिनाही एकदम मन माना ' मणिसागरजीका एक और ‘उत्पात ' नामक हेडबिल छपवाकर प्रकट करवाया. उसमें लिखा कि यह सब सहिये मणिसागरने करवाई हैं, उस में सब सेठियोंकी सही नहीं है, इस विनंतीपत्र के साथ संघकी कुछभी जोखमदारी नहीं है, आचार्य महाराज जैन धर्म की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति देनेको तयार हैं. जिन्होंने राजा महाराजाओं को प्रतिबोध देकर जैनधर्म के प्रति अनुराग बढाया है. मणिसागरको हमने इन्दोर से नहीं बुलाया धूलिये से बुलाया है, गलीच भाषा हमारी नहीं हैं, मणिसागरकी है, शासन की हिलना हमने नहीं करवाई है, माणसागर ने करवाई है. ऐसी विनंतीको हम रद्दीकी टोकरीके स्वाधीन करते हैं. ऐसा विद्याविजयजीने ज्येष्ठ वदी २के रोज हेंडबिल छपवाकर अपने बचावके लिये प्रत्यक्ष झूठी झूठी बातें लिखकर भोले लोगोंको भरमाने का साहस किया तब उसपर मैंने एक विज्ञापन छपवाकर प्रकट किया था उसकी नकल यह है: ....... विद्याविजयजी का मृषावाद. - 1 ज्येष्ठ बदी 2 के रोज एक हेंडबिल छपवाकर विद्याविजयजी ने लिखा है कि " मणिसागर को हमने इन्दौरसे नहीं बुलाया धूलिया से बुलाया है," यह प्रत्यक्षही मृषा है. क्योंकि देखो अभी फागण सुदी 10 के रोज सेठ घमडसी जुहारमल के नोहरेमें से विद्याविजयजीने खास पोष्टकार्ड लिखकर मेरेको बदनावरसे शास्त्रार्थ के लिये इन्दोर जल्दी से
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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