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________________ देखकर इन्दोर के सब संघको बहुत बुरा मालूमहुआ तब संघने आगेवान् सेठियों की और अन्य सद्गृहस्थों की 36 सहीयोंवाला एक विनंतीपत्र छपवाकर प्रकट किया और विजयधर्म सूरिजी के इस अनुचित कर्तव्यपर अपना असंलोष जाहिर किया. उस विनंतीपत्रकी नकल नीचे मुजब है:पूज्यपाद आचार्य श्रीमान् विजयधर्म मूरिजी से नम्र विनंती. ___ देवद्रव्य को चर्चा बाबद आपस में क्लेश बढाने वाले गालीगलोच के व गलीच भाषा के हेडबील नहीं छपवाने का तारीख. 23 / 1 / 22 के रोज " देवद्रव्य की चर्च और इन्दौर का संघ" नामक शीर्षक के हेडबील में इन्दौरमें ठहराव हो चुका है. यह बात आपने भी स्वीकार करली थी व उस विश्वासपर ही आपके कथानुसार यहां के संघ के आगेवानोंने सहियें दी थीं. श्रीमान् आनंदसागरसूरिजी के और आपके व मुनि मणिसागरजी के और आपके आपसमें जैसा पत्र व्यवहार हुआ था वैसा दोनों ने छपवाया, उसमें हम लोगों को कोई उजर नहीं लेकिन वैशाख शुदी 10 के दिन आपकी तरफ से एक हेडबील छपकर प्रगट हुआ है और बाजारमें लगवाया गया है व बांटागया है. उसमें हम गृहस्थी लोग भी जैसे अपशब्द नहीं लिख सकते वैसे गलीच भाषा के हलके शब्दं आप साधु महात्मा होते हुए भी आपने लिखे हैं. उस से बाजार में शासन की हिलना होरही है. आप हम लोगोंको शांति रखने का सदैव उपदेश देते हैं और आप खुद ऐसे क्लेश बढाने वाले कार्य करते हैं यह देखकर हम लोगों को बड़ा अफसोस हुआ है इस समय हिंदू मुसलमानों में संप होरहा है. ऐसे अवसर में हमारे धर्म गुरु ऐसे घृणित शब्दों के हेडबील छपवाकर जाहिर करें यह बडे दुःख की बात है. आपने हमलोगों से मंजूर किया था कि आयंदा कोई हेंडबील प्रगट नहीं किया जावेगा. हम आपके बचन के विश्वासपर रहे थे. आज हमारा वो विश्वास बिलकुल भंग होगया. ऐसे हैंडबील छपवाकर आपने अपना
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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