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________________ ऊपर बडा भारी क्रोध करके उस निरापराधी श्रावक को अपने स्थानसे बाहिर निकालने का एकदम हुकम करदिया और अपने पदकी, साधु पनेकी मर्यादा को भूलगये ( इस बनावको देखकर लोगोंको बहुत बुरा मालुम हुआ परंतु आपकी शर्मसे कुछ बोले नहीं. मगर आपके न्यायकी सहनशीलता की योग्यता को अच्छी तरह समझ गये ) उसी तरह यदि सत्य कहने से मेरे परभी आप या आपके अनुयायी किसी तरह से क्रोधमें आकर अनर्थ खडा कर बैठे या मनमाना झूठ लिख देवें तो क्या भरोसा? इस कारणसे मैं आपके स्थानपर इस विषयसंबंधी नहीं आसकता. 8 सत्यग्रहण करनेकी सही वगैरह बातें तै हुए बिना ही पहिले से संघ को सूचना देने का कहना ही फझूल है. और जब मेरे साथ शास्त्रार्थ करने का मंजूर करलिया शास्त्रार्थ के लिये ही इन्दोर जलदिसे मेरेको बुलवाया, तब से ही इस शास्त्रार्थ में मेरी योग्यता साबित हो चुकी है. अब फजूल बारबार योग्यता अयोग्यता की और संघ की आड लेना यह तो अपनी कमजोरी छुपाने का खेल खेलना है. 9 इतने पर भी सेठ घमडसी जुहारमलजी के नोहरे में आपके स्थान पर ही मेरेको इस विषय के शास्त्रार्थ के लिये बोलाने की आप इच्छा रखते हैं, तो मैं आनेको तयार हूं. मगर वहां किसी तरह की गडबड न होने पावे इस बात की सब तरह की जोखमदारी की सही मकानके मालिक सेठ पूनमचंदजी सावणसुखा के पाससे भिजवाइये और मेरे साथ कौन विवाद करेगा उनका नाम लिखिये, आपकी तर्फ से एक साधुके सिवाय अन्य किसीको बीचमें बोलनेका हक न होगा, तथा खाली जबान की बातोंसे काम न चलेगा. सब लेखी व्यवहारसे सवाल-जबाब होंगे. अगर उसमेंभी जितनी आपकी बातें झूठी ठहरें उतनी बातोंके आप मिच्छामि दुक्कडं देंगे या नहीं इन सब बातोंका खुलासा आपके हाथकी सही से 24 घंटे में भेजिये, मैं आने को तयार हूं मेरेको कोई इनकार
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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