________________ 209000 055555555030055000000 जाहिर खबर बृहत्पर्युषणा निर्णयः इसग्रंथमें वीरप्रभुके गर्भापहाररूप दूसरे च्यवन कल्याणक को मानने में शंका करनेवालोंकी सब शंकाओंका समाधान सहित तथा अभी कई साधु लोग पर्युषणा के व्याख्यान में उसका निषेध करते हैं, उन्होंकी सब कुयुक्तियों का खुलासा सहित आगमपाठानुसार व वडगच्छादी प्राचीन सबंगच्छोंके पूर्वाचार्यों के रचे ग्रंथानुसार अच्छीतरहते कल्याणक माननेका सिद्धकरके बतलाया है. और लौकिकटिप्पणामें जैसे कभी कार्तिकादि क्षयमहिनेआतेहैं, तब उन्हों में दीवाली-ज्ञानपंचमी-कार्तिकचौमासी-कार्तिकपूर्णिमा-पोष दशमी वगैरह धर्मकार्य करने में आते हैं तैसेही श्रावणादि अधिक 0 महिनो में भी पर्युषणादि पर्वके धर्मकार्य करने में कोई दोष नहीं है, इस विषय में भी पर्युषणाके बाद 100 दिन तक ठहरने वगैरह / सब शंकाओंका समाधान सहित प्राचीन शास्त्रोंके प्रमाणोंके साथ 0 विस्तार पूर्वक निर्णय लिखा है. और हरिभद्रसारिजी-हेमचंद्राचार्यजी नवांगीकृत्तिकार अभयदेवसूरिजी-देवेन्द्रसारिजी-उमास्वातिवाचक-जिन0 दासगाणमहत्तराचार्य वगैरह सबगुच्छों के प्राचीनाचार्यों के रचे 4 ग्रंथानुसार श्रावक को सामायिक करने में पहिले करेमिभंतेका 0 उच्चारण किये बाद पीछेसे इरियावही करनेका साबित करके बत लाया है. उसी मुजब आत्मार्थी भव्यजीवोंको सामायिकादि धर्मकार्य 6 करनेसे जिनाज्ञा की आराधना हो सकती है, इसका भी अच्छी तरहसे निर्णय किया है. इन सब बातोंका खुलासा देखना चाहते हो तो "बृहत्पर्युषणा निर्णयः" ग्रंथ मेट मिलता है उसको 4 मंगवाकर देखो, डाक खर्च के नव आने लगेंगे, देवद्रव्य निर्णय के प्रकाशकों के ठिकानेसे मिलेगा. DSC000055000000000000