________________ . . 8 विद्वान् होकर अनुचित कार्य करे, तो उसका प्रतिकार करना हर एक का कर्तव्य है. अभी विद्वत्ता, प्रतिष्ठा व समुदाय से भी युक्ति पूर्वक सत्य को समाज विशेष देखने वाला है. इस लिये आप विद्वत्ता, प्रतिष्ठा व समुदाय की बात लिखकर शास्त्रार्थ उडाना चाहते हैं यह भी सर्वथा अनुचित है. . 9 अन्यान्य बातों को आगे लाना छोडकर सत्यग्रहण करने की व झूठ का मिच्छामि दुक्कडं देने की प्रतिज्ञा करिये, और न्याय के अनुसार प्रतिज्ञा, मध्यस्थ, साक्षी व समय नियत करके अन्य तयारियों के लिये दोनों संपसे मिलकर संघ को सूचना देनेका मंजूर करिये. 1 विशेष सूचना:-यहां के स्वयंसेवक मंडल के आगेवान् श्रीयुत हीरालालजी जिन्दाणीने दोनों तर्फ से पत्रव्यवहार बंध करके इस विषयका शांतिपूर्वक शास्त्रार्थ होनेके लिये कोई भी. रस्ता निकालने का कहा था, यह बात दोनों पक्षवालों ने मंजूर की थीं. मैंने उन्होंके उपर ही विश्वास रखकर कहा कि आप जो योग्य व्यवस्था करेंगे वह मेरेको मान्य है, तब उन्होंने आप लोगोंकी तर्फसे सलाह लेकर दो साक्षी आप की तर्फसे, दो साक्षी मेरी तर्फसे और एक मध्यस्थ नियत करके शास्त्रार्थ करने का ठहराया था. मैंने उस बातको स्वीकार किया था. आपने भी पहिले तो अनुमति दी फिर पीछेसे नामंजूर किया और बीच में संघ की आड ली यह भी आपके योग्य नहीं है. . 2 सागरजी के समय से आपको यहां के संघ की व्यवस्था मालूम ही थी तो फिर आपने संघ की अनुमति लिये बिना मेरेको शास्त्रार्थ के लिये जल्दी क्यों बुलवाया? बुलवानेके वक्त अनुमति न ली, अब शास्त्रार्थ के वक्त संघकी बात बीचमें लाते हैं, यह भी अनुचित है. ... 3 आपका और मेरा तो प्रीतिभाव ही है. इस शास्त्रार्थ में कोई अंगत कारण नहीं है. आप साधारण खाते को पुष्ट करना चाहते