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________________ अतिक्रमण का प्रतिक्रमण प्र.104.प्रतिक्रमण किसे कहते है? उ. पापों से पीछे हटने की प्रक्रिया को प्रतिक्रमण कहते है। पूर्वकृत अपराधों एवं अतिचारों का मिच्छामि दुक्कडम् देकर प्रायश्चित्त करने को प्रतिक्रमण कहते है। प्र.105. प्रतिक्रमण को शास्त्रों में आवश्यक क्रिया क्यों कहा गया है? उ. दिन और रात्रि के अन्त में साधु और श्रावक के लिये अवश्यमेव करणीय है, अतः प्रतिक्रमण को शास्त्रों में आवश्यक क्रिया कहा गया है। प्र.106.आवश्यक कितने प्रकार के होते हैं? उ. छह प्रकार के-1. सामायिक 2. चतु विंशतिस्तव 3. वंदनक 4. प्रतिक्रमण 5. कायोत्सर्ग 6. प्रत्याख्यान। प्र.107.आवश्यक जब छह प्रकार के कहे गये हैं तो फिर इसे प्रतिक्रमण क्यों कहा जाता है? उ. छह आवश्यकों में से प्रतिक्रमण आवश्यक सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण है, इसलिये इसे प्रतिक्रमण कहा जाता है। प्र.108.छह आवश्यक के क्रमिक कथन का कारण बताईए। उ. 1. किसी भी रोगी को यदि रोग मुक्त न होना है तो दो बातों का ज्ञान / आवश्यक है- 1. मैं रोगी हूँ। 2. ** ************* 37 मुझे रोग का परिहार करना है। इस हेतु व्यक्ति चिकित्सालय में जाता है। इसी प्रकार राग-द्वेष की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति स्वस्थ होने के लिये 'मैं आत्मा हूँ और मुझे परमात्मा होना है। यह निश्चय करके सामायिक रूपी अस्पताल में प्रविष्ट होता है। (सामायिक आवश्यक) 2. रोगी सर्वप्रथम मुख्य चिकित्सक के पास पहुँचता है। चिकित्सक जांच करके सारी बातें परची पर अंकित करता है, उसी प्रकार चौबीस तीर्थंकरों का सानिध्य प्राप्त करके व्यक्ति उनकी स्तुति एवं भक्ति करता है। (चतु र्विंशति स्तव आवश्यक) 3. परची पर लिखित मुख्य बातों को समझने के लिये वह सहयोगी चिकित्सक (कंपाउंडर) के पास पहुँचता है, उसी प्रकार जिन प्ररूपित तत्त्व को समझने के लिए व्यक्ति गुरू महाराज के पास पहुँचता है और वंदना करता है। (वंदनक आवश्यक) 4. कंपाउंडर रोगी को याद करवाता है कि रोग कैसे हआ, फिर ****************
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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