________________ 19. उदरशूल - पेट दर्द / 20. एषणीय - एषणा (याचना) के योग्य / 21.कल्पनीय - आचार के योग्य / 22. कल्याणक- कल्याण करने वाला / 23. कालातिक्रम- जिसका जो समय है, उससे अधिक हो जाना / 24. काष्ठ - लकडी / 25.गन्तव्य - जाने योग्य, जहाँ पहुँचना है, वह स्थान | 26. ग्राह्य - ग्रहण करने योग्य / 27. छद्मस्थ काल - दीक्षा से केवलज्ञान होने के मध्य का काल | 28. जघन्य - कम से कम (Minimum) 29. जंघाचारण- ऐसे मुनि, जो जंघाओं पर हाथ रखकर आकाश में विचरण करते हैं। 30. त्रियोग - मन, वचन और काया रुपं तीन योग / 31. द्वय - दो 32. धर्मास्तिकाय-छह द्रव्यों में से एक / 33. ध्यातव्य - ध्यान देने योग्य / 34. नववाड - ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिये नौ प्रकार के नियम | 35. निक्षेपण - रखना / 36. निदान - धर्म के बदले में संसार की याचना / जैसे द्रौपदी ने पूर्वभव में याचना की थी। 37. निरवद्य - हिंसा रहित / 38. निर्मद - अभिमान रहित / 39. निर्वाण - मोक्ष / 40. निर्वेद - वैराग्य / 41. पल्य - जैन दर्शन में काल गणना का एक मापदण्ड / असंख्य वर्षों की कालावधि / 42. परठना - गिराना, छोडना, त्याग देना / 43. परिणमनशील- बदलने वाला / ****** 314 *****************