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________________ राहत मिलती है। 3. वातजन्य गर्दन के रोग में अगर बायीं ओर तकलीफ हो तो दाहिने हाथ से और दाहिनी ओर __ तकलीफ हो तो बायें हाथ से मुद्रा करनी चाहिये। नोट : यह मुद्रा 30 मिनट तक कर सकते हैं। जरूरत हो तो दिन में दो से तीन बार 15-15 मिनट तक कर सकते हैं। जब दर्द दूर हो जाये और वायु सम हो जाये, तब इस मुद्रा का प्रयोग बंद कर देना चाहिए। प्र. 658.आकाश मुद्रा किस प्रकार की जानी चाहिये? उ. विधि- मध्यमा अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर शेष तीनों अंगुलियों __ को सीधी रखते हुए आकाश मुद्रा बनती है। लाभ: 1.इस मुद्रा से भावधारा निर्मल होती है एवं आत्म शक्ति व स्फूर्ति का विकास होता है। 2.दांत की कोई भी तकलीफ दूर हो जाती है एवं दांत मजबूत बनते हैं। 3. उबासी लेते वक्त अगर जबड़ा जम जाये तो इस मुद्रा से ठीक होता है। कान की बीमारी __ अगर शून्य मुद्रा से ठीक न हो तो साथ में आकाश मुद्रा भी करनी चाहिये / मुमुक्षु भाव जगाने में यह प्रभावक मुद्रा है। प्र. 659. शून्य मुद्रा किस प्रकार करें? उ. विधि-मध्यमा के अग्रभाग को अंगूठे के मूल भाग पर लगाकर उसके ऊपर अंगूठा रखकर हल्का दबाव देकर बाकी की अंगुलियाँ सीधी रखते हुए शून्य मुद्रा बनती है। लाभ: कान के दर्द में, कान में सतत आवाज आना, कम सुनाई देना आदि कोई भी बीमारी ठीक न हो तब तक यह मुद्रा निरंतर करनी चाहिये। 5 से 10 मिनट करने से तुरन्त लाभ मिलता है। नोट :- ऊपर बतायी हुई तकलीफ दूर होने के बाद यह शून्यमुद्रा का अभ्यास भी बंद कर देना चाहिए। श्रवण शक्ति बढती है परन्तु उसका फिल्म संगीत आदि के श्रवण में इस मुद्रा का दुरूपयोग न करके हित शिक्षा सुने। प्र. 660. पृथ्वी मुद्रा कैसे करें?
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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