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________________ जाप से कटते हैं पाप प्र.605. जाप किसे कहते है? दूसरी अपेक्षा से पाँच प्रकार के जाप उ. मन, वचन तथा काया की एकाग्रता से कहे गये हैं - (1) शब्द (भाष्य) जाप साध्य को समर्पित होना जाप (2) मौन (उपांशु) जाप (3) सार्थ कहलाता है। जप शब्द ज+प से (अर्थ सहित) जाप (4) चित्तस्थ निष्पन्न हुआ है। ज से जन्म-जरा व (मानस) जाप (5) ध्येय-एकत्व मृत्यु का विनाश एवं प से पाप कर्मों जाप- जिसमें ध्यान, ध्याता एवं का क्षय करने वाला महानुष्ठान जप ध्येय एकाकार हो जाते हैं। उच्चारण की अपेक्षा से हृस्व, दीर्घ प्र.606. जाप कितने प्रकार के कहे गये और प्लुत, ये तीन प्रकार के जाप होते हैं। रेचक, पूरक, कुंभक, सात्विक उ. शास्त्रों में जाप के अनेक भेद बताये , आदि तेरह प्रकार के जाप भी शास्त्रों गये हैं में वर्णित हैं। तीन प्रकार के जाप- प्र.607.जाप से पूर्व किन-किन बातों का 1. भाष्य जाप- मधुर, मंद और . ध्यान रखना चाहिये? स्पष्ट रूप से उच्चारित करके उ. 1. जाप शुरु करने से पूर्व जिन्हें आप किया वाला जाप, जिसे दूसरा सुन सिद्ध करना चाहते हैं अथवा सकता है, उसे भाष्य जाप कहते जिनकी प्रत्यक्ष-परोक्ष कृपा की कामना रखते हैं, उनके स्वरूप का 2. उपांशु जाप- जिसमें होंठ, जीभ संपूर्ण एवं स्पष्ट ज्ञान होना का हलन-चलन होता है परन्तु चाहिये। शब्द सुनाई नहीं देते हैं, उसे 2. गुरु मुख से विधिपूर्वक मंत्र ग्रहण उपांशु जाप कहते है। करना चाहिये, इससे वह शीघ्र 3. मानस जाप- मन ही मन जो फलदायी होता है। मनमाने और जाप किया जाये, उसे मानस जाप स्वरूप को जाने बिना मंत्रों का कहते है। प्रयोग करने से विपरीत प्रभाव हो
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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