________________ उपकारी जानकर प्रत्युपकार करने वाले। (4)सौतन के समान - मिथ्या दोषारोपण करने वाले। प्र.478. जिनशासन में विशिष्ट श्रावक कौन-कौन हुए? उ. (1)उपासकदशांग सूत्र में परमात्मा के आनंद, कामदेव इत्यादि उन दस श्रावकों का वर्णन है, जिन्होंने जीवन में प्रभु के श्रीमुख से बारह व्रत स्वीकार कर ग्यारह प्रतिमाओं की उत्कृष्ट आराधना की एवं अन्तिम समय में एक मास की संलेखणा कर एकावतारी देव बने। (2) वासुदेव श्रीकृष्ण नेमिनाथ प्रभु के प्रमुख श्रावक थे। उनकी प्रेरणा से अनेक संयमी बने। वे अपनी हर पुत्री को कहते-रानी बनना हो तो संयम लो, दासी बनना हो तो शादी करो। (3) श्रेणिक सम्राट् भी परमात्मा महावीर के अत्यन्त श्रद्धाशील श्रावक थे। अन्तिम संस्कार के समय उनकी चिता में वीर–वीर की ध्वनि निकली। (4)पूणिया श्रावक की सामायिक की प्रशंसा स्वयं वीर प्रभु ने की एवं सुलसा सती को धर्मलाभ कहलवाया। विजय सेठ-विजया सेठानी की भीष्म प्रतिज्ञा सर्वत्र प्रसिद्ध है। जीरण सेठ चौमासे में प्रतिदिन प्रभु से आहार की विनंती करने जाते थे। जयन्ती श्राविका की धर्म-चर्चा भगवती सूत्र में वर्णित है। (5) सम्प्रति सम्राट का जिनवाणी के प्रचार - प्रसार में महान् योगदान रहा। उन्होंने सवा लाख जिन मंदिरों का निर्माण करवाया। सवा करोड़ जिन प्रतिमाएँ भरवायी। (6) जीवदया प्रेमी कुमारपाल महाराजा. जिन शासन के परमानुरागी श्रावक थे, उन्होंने अनेक ग्रंथों का लेखन करवाया। (7)धरणाशाह ने राणकपुर का मंदिर बनवाया। (8)महाकवि' धनपाल, वस्तुपाल, तेजपाल, देदाशाह, जावड़शाह, जगडूशाह, पेथडशाह, झांझणशाह, थाहरुशाह भणशाली, कर्मचन्द्र बच्छावत, मोतीशा नाहटा आदि अनेक श्रद्धानिष्ठ, क्रियावान् एवं दानी श्रावकों ने शासन की महती प्रभावना की।