________________ कि प्रभो! मैं कब सिद्धपद को प्राप्त (1)अपनी चमड़ी के जूते बनाकर करुंगा। तत्पश्चात् - पहनाएँ। 'अंगूठे अमृत वसे, लब्धि तणा भण्डार। (2)देव बनकर जीवन भर कंधों पर श्री गुरू गौतम समरिये, वांछित फल दातार।। उन्हें उठाकर फिरे। 'दासानुदासा इव सर्व देवा, (3)छप्पन पकवान बनाकर खिलाये यदीय पादाब्जतले लुठन्ति / तब भी माता-पिता के उपकारों मरूस्थली कल्पतरू स जीयाद् का ऋण चुका पाना असम्भव है। युगप्रधानो जिनदत्तसूरिः।।' वे अनेक कष्ट उठाकर भी पुत्र की ये दोनों श्लोक बोलकर क्रमशः गौतम सुविधा एवं सुख का ख्याल रखते स्वामी तथा दादा गुरुदेव को हैं। संस्कारी, योग्य, शिक्षित, भावपूर्वक वंदना करें। व्यवहारिक, धार्मिक, स्वावलम्बी हथेली दर्शन से ये भाव भी अभिव्यक्त सन्तान के निर्माण में पूर्णतया होते हैं कि माता-पिता के उपकार ही कारण * इन हाथों से आज किसी को दुःखी हैं। ऐसे निःस्वार्थी, उपकारी माता - नहीं करूँगा। पिता के आशीर्वाद का अमृत पाने * सुपात्र दान आदि शुभ कार्य करूँगा। हेतु चरण स्पर्श किया जाता है। * दीन-दुःखी के आँसू पोछूगा। प्र.397. चरण स्पर्श का वैज्ञानिक रहस्य * किसी जीव की हिंसा नहीं करूँगा। बताईये। * निर्बल को सताऊँगा नहीं। झूठा उ. चरण स्पर्श को बुद्धिजीवी लोग केवल लेख आदि नहीं लिखूगा। रूढिवाद के रूप में समझते हैं अतः * प्रभु एवं गुरु भगवंतों को हाथ जरूरी है कि इसके वैज्ञानिक पक्ष से जोड़कर वंदना एवं आदरणीय अवगत कराया जावे। माता-पिता आदि को हाथ प्रत्येक व्यक्ति के प्रत्येक अंग एवं जोड़कर चरण स्पर्श करूँगा। उपांग से ऊर्जा/विद्युत्-तरंगें प्र.396. चरण स्पर्श क्यों करना चाहिये? प्रवाहित होती हैं। जैसे पॉवर हाउस में उ. माता-पिता के उपकारों को लिखना तार जोड़ने से लाईट हो जाती है, असंभव है। शास्त्रों में कहा गया है कि ठीक उसी प्रकार वंदनीय गुरुजनों कोई पुत्र एवं माता-पिता के चरणों का स्पर्श ** ************* 146