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________________ विकथा की विकटता प्र.377. कथा कितने प्रकार की कही गयी हैं? उ. मुख्यतः दो प्रकार की 1.. धर्म कथा और 2. अधर्म कथा (विकथा)। 1. जिससे जीवात्मा में आत्मा के प्रति रूचि उत्पन्न हो, जो सम्यक्दर्शन में स्थिर करें एवं जीव को मोक्षानुरागी बनावें, उसे धर्मकथा कहते है। धर्म कथा स्वाध्याय के पांच प्रकारों में से एक हैं। परमात्मा अपने प्रवचन में कथा, * रूपक एवं उपमान सुनाते थे क्योंकि कथा के द्वारा दर्शन, कर्म एवं सिद्धान्त की दुरूह, कठिन बातें भी सहज ही समझ में आ जाती है। जम्बूकुमार ने धर्म कथा के माध्यम से आठ पत्नियों को मोक्षमार्ग पर आरूढ किया। नन्दीषण मुनि धर्म कथा में इतने निपुण थे कि बारह वर्ष पर्यन्त प्रतिदिन दस व्यक्तियों को प्रव्रज्या के पावन पथ पर अग्रसर किया। 2. जो कथा कषाय, मिथ्यात्व, विषय वासना का पोषण करे एवं जन्म-मरण में वृद्धि करें, वह अधर्म कथा कहलाती है। आजकल क्रिकेट सिनेमा, अभक्ष्य उत्तेजक खान-पान, उद्भट वेश-भूषा, सौन्दर्य की कथाओं (वार्तालाप) के कारण हजारों व्यक्ति वासना, चोरी, अभद्र व्यवहार, अश्लील जीवन के शिकार होते जा रहे हैं। कभी कभी इन उत्तेजना एवं कषायवर्द्धक कथाओं के कारण व्यक्ति अकरणीय कर लेता है, माँ-बाप को गोली से उडा देता है, क्लब, बार में जिन्दगी को फूंक देता है, लड़के-लड़की घर से भाग जाते है। एड्स आदि बीमारियाँ अधर्म (विकथा) कथा का ही परिणाम है। प्र.378. चार प्रकार की कौनसी अधर्म कथाएँ त्याज्य हैं? उ. (1)राजकथा- राग-द्वेष से परिपूर्ण राजनीति सम्बन्धी चर्चा/कथा करना। (2)देशकथा- देश/राज्य के पाप कार्यों की अनुमोदना करना / (3)स्त्रीकथा (पुरूष कथा)- विजातीय के रूप-रंग, सौन्दर्य लावण्य, वेशभूषा आदि की राग-द्वेष पूर्वक चर्चा करना।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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