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________________ अनुकूलता होगी, वैसा देखा जायेगा। (3)तहत्ति - आदेश स्वीकृति को प्रकट करता है 'तहत्ति' शब्द।। (4)आराधना- जिनाज्ञा के अनुरूप होने वाली मन - वचन - काया की प्रवृत्ति। (5)विराधना- जिनाज्ञा के प्रतिकूल होने वाली मन आदि की क्रिया। (6)आगार-किसी भी प्रत्याख्यान में रखी जाने वाली छूट। (7)त्रिकाल वंदना- इससे रात्रि के समय वंदना की अभिव्यक्त होती (9)सुझता- शुद्ध, दोषों से मुक्त, __ अचित्त, कल्पनीय आदि। (10) प्रासुक-अचित्त। (11) जय जय नंदा-जय जय भद्दा- साधु- साध्वी का कालधर्म होने पर बोला जाने वाला शास्त्रीय सूत्र। (12) मत्थएण वंदामि- मस्तक झुकाकर वंदन करता हूँ। (13) मिच्छामि दुक्कडं-जो कुछ मुझसे गलत, बुरा अथवा अंप्रिय हुआ, उसकी क्षमायाचना। (14) जय जिनेन्द्र- जिनेश्वर परमात्मा की जय हो अथवा स्वधर्मी बंधु के अभिवादन हेतु प्रयोग। (8)सचित्त-अचित्त- जीव युक्त पदार्थ सचित्त एवं जीव रहित पदार्थ अचित्त कहलाता है।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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