________________ यह भी ज्ञातव्य है कि एक ही नरक के (8)देव, गुरु, धर्म, माता-पिता एवं भिन्न भिन्न नारकी जीवों की वेदना में सम्माननीय बुजुर्गों की अवज्ञाभी भिन्नता होती है। अनादर करने वाले के हृदय को प्र.236. परमाधामी देव उन्हें किस प्रकार भाले से चीर देते हैं। से वेदना देते हैं? (9)चोरी, माया, प्रपंच, किसी के पैसे परमाधामी देव उन्हें विविध प्रकार से लूटने वाले डकैतों, आतंकवादियों पीड़ित व प्रताड़ित करते हैं यथा को ऊँचे पर्वत से नीचे गिराते हैं (1)मांस खाने वाले को उसी के शरीर एवं वृक्षों से लटकाकर असह्य का मांस काट-काटकर एवं उसे वेदना देते हैं। तल-भूनकर उन्हें जबरदस्ती (10) दूसरों को मारने-पीटने वालों के खिलाते हैं। हाथ-पाँव काट देते हैं। निंदा (2)मदिरा पान करने वाले को उबलते एवं चुगली करने वाले की एवं शीशे, ताम्बे का रस पिलाते हैं। असत्य-अपशब्द बोलने वालों (3)वेश्या एवं परस्त्रीगमन करने वाले की जीभ काट देते हैं, गलत बातें को अग्नि से तप्त रक्तवर्णीय लोहे सुनने वाले, फिल्मी-गंदे गीत की पुतली से जबरदस्ती आलिंगन सुनने वाले के कानों में गर्म शीशा करवाते हैं। . उंडेलते हैं, अश्लील दृश्य देखने (4)जानवर, नौकर, चाकर से अधिक वाले की आँखों को फोड़ देते हैं। काम करवाने वाले को एवं उन पर (11)अज्ञानी, भोले भाले जीवों को अधिक बोझ लादने वाले को बहलाकर गुमराह करने वालों अधिक भार वाली गाड़ी मार को जाज्वल्यमान अंगारों पर पीटकर खिंचवाते हैं। चलाते हैं। (5)स्नान आदि में पानी का अपव्यय प्र.237. नारकी जीवों को परमाधामी देव करने वाले को गर्म उबलती हुई अनेक प्रकार से अनेक बार दारूण खून, शीशे की वैतरणी नदी में यातनाएँ देते हैं तो क्या वे मर तैरने के लिये मजबूर करते हैं। नहीं जाते? (6)सर्प-बिच्छू आदि की हिंसा करने उ. नहीं / उनका शरीर वैक्रिय होता है। वालोंको वैसा रूप बनाकर काटते हैं। वह पारे की तरह पुनः पुनः एकमेक हो (7)शिकार करने वाले के अंगोपांग जाता है। अतः जब तक आयु पूर्ण धनुष-बाण से भेद देते हैं। नहीं होती, तब तक कृतकर्मों का फल भोगना ही होता है। *************** 74 ****************