________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-3-8 (355) 59 IV टीका-अनुवाद : 'वह साधु यदि ऐसे प्रकार के कुल देखे कि- चक्रवर्ती वासुदेव, बलदेव आदि क्षत्रियों के कुल, तथा क्षत्रियों के अलावा अन्य राजाओं के कुल, तथा तुच्छ राजाओं के कुल, तथा दंडपाशिकादि राजप्रेष्यों के कुल, तथा राजा के मामा, जीजाजी आदि राजवंश में रहे हुए लोगों के कुल, इत्यादि ऐसे लोगों के कुल = घरों में पतन = उपद्रव के कारण से प्रवेश न करें... वे लोग घर में रहे हुए हो या बाहार मार्ग में जाते हुए हो या कहीं आवास किये हुए हो तब निमंत्रण करे या निमंत्रण न करे तो भी उनके घरों में आहारादि प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करें... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- मुनि को चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि क्षत्रिय कुलों का तथा उनसे भिन्न राजाओं के कुल का, एक देश के राजाओं के कुल का, राजप्रेष्यदण्ड-पाशिक आदि के कुल का और राजवंशस्थ कुलों का आहार नहीं लेना चाहिए। उक्त कुलों का आहार उनके द्वारा निमन्त्रण करने पर या बिना निमन्त्रण किये उनके घर से बाहर या घर में किसी भी तरह एवं कहीं भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। यहां इस निषेध का कारण यह है कि- राजभवन एवं राजमहल आदि में लोगों का आवागमन अधिक होने से साधु भली-भांति ईर्यासमिति का पालन नहीं कर सकता। इस कारण से संयम की विराधना होती है। इसलिए साधु को उक्त कुलों में आहार आदि के लिए प्रवेश नहीं करना चाहिए। क्योंकि प्रस्तुत अध्ययन के द्वितीय उद्देशक में जिन 12 कुलों का निर्देश किया है उनमें उय कुल, भोग कुल, राजन्य कुल, इक्ष्वाकु, हरिवंश आदि कुलों से आहार लेने का स्पष्ट वर्णन है। भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य गणधर गौतम अतिमुक्त कुमार के अंगुली पकड़ने पर उसके साथ उसके घर पर भिक्षार्थ गए है। इससे स्पष्ट होता है कि- यदि इन कुलों में जाने पर संयम में किसी तरह का दोष न लगता हो तो इन घरों से निर्दोष आहार लेने में कोई दोष नहीं है। यहां पर निषेध केवल इसलिए किया गया है कि- यदि राजघरों में अधिक चहल-पहल आदि हो तब एसे समय ईर्यासमिति का भली-भांति पालन नहीं किया जा सकेगा, इस संबन्ध में वृत्तिकार का भी यही अभिमत है। 'त्तिबेमि' की व्याख्या पूर्ववत् समझें। // प्रथम चूलिकायां प्रथम पिण्डैषणाध्ययने तृतीयः उद्देशकः समाप्तः //