________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-3-3 (350) 49 आहारयेत् // 350 // III सूत्रार्थ : जो साधु व साध्वी किसी अन्य स्थान पर संखडि को सुन कर तथा मन में निश्चय कर उत्सुक आत्मा से वहां जाता है, तब संखडि का निश्चय कर संखडि वाले ग्राम में या संखडि से भिन्न, जिन घरों में संखडि नहीं है वहीं आधाकर्मादि दोषों से रहित भिक्षा प्राप्त होती है। किंतु वहां भी इस भावना से आहार को जाता है कि- मुझे वहां भिक्षा करते देख कर संखडि वाला व्यक्ति मुझे आहार की विनती करेगा ऐसा करने से मातृस्थान-कपट का स्पर्श होता है। अतः साधु इस प्रकार का कार्य न करे। वह भिक्षु संखडियुक्त ग्राम में प्रवेश करके भी संखडि वाले घर में आहार को न जाए, परन्तु अन्य घरों में साधुदानिक भिक्षा जो किआधाकर्मादि दोषों से रहित हो, उसे ग्रहण करके अपने संयम का परिपालन करे। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. पुरःसंखडी या पश्चात्संखडी कोई भी संखडी की बात अन्य से सुनकर या स्वयं हि निश्चय करके कोई भी कारण से उत्सुक होकर वहां जाते हैं जैसे कियहां मुझे अतिशय अद्भुत भोजन प्राप्त होगा, क्योंकि- वहां निश्चित हि संखडी है ऐसा देखकर वह साधु उस संखडिवाले गांव में संखडि रहित अन्य अन्य घरों में आधाकर्मादि रहित एषणीय आहारादि की भिक्षा तथा रजोहरणादि वेषमात्र से प्राप्य उत्पादनादि दोष रहित आहारादि ग्रहण करके भोजन कर (वापर) नहि सकतें... क्योंकि- उस साधु को संखडी के आहार की चाहना होने से माया-कपट का दोष लगता है... तथा जो कि- अन्य अन्य घरों में से आहारादि के लिये जावे, किंतु वह उन आहारादि को माया-कपट से ग्रहण नहि करता और बाद में वह संखडि में हि जावे... इस प्रकार माया का आसेवन होता है... अतः ऐसा न करें क्योंकि- ऐसा करने से तो इस भव में और भवांतर में अपाय (दुःखों) का भय रहा हआ है, इसलिये संखडिवाले गांव में साधु न जावे... किंतु ऐसी परिस्थिति प्राप्त हो तो वह साधु संखडिवाले गांव में भिक्षा के समय प्रवेश करके वहां अन्य अन्य उयकुलादि के घरों में से प्रासुक एवं एषणीय तथा वेषमात्र से प्राप्त होनेवाले धात्रीपिंडादि दोष रहित आहारादि ग्रहण करके आहार वापरे... और भी संखडि विषयक विशेष बात सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहेंगे. V सूत्रसार: प्रस्तुत सूत्र में कहा गया है कि- साधु को संखडि में जाने के लिए छल-कपट का सहारा भी नहीं लेना चाहिए। जैसे-किसी मुनि को यह मालूम हुआ कि- अमुक स्थान पर