________________ 42 2-1-1-2-4 (347) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन (शय्या) को ढंडी के भय से निवात करें, अथवा ग्रीष्मकाल में इस से विपरीत याने पवन नहि आनेवाली वसति को प्रवात याने "पवन आवे" ऐसा करें... तथा उपाश्रय के अंदर या बाहर वनस्पति-घास का छेद करके अथवा भेदन करके उपाश्रय का संस्कार करें... अथवा संथारे का संस्तारण करें... गृहस्थ यह सोचकर संस्कार करें कि- यह साधु शय्या (वसति) को संस्कार करने में सोचे कि- हम तो निग्रंथ, अकिंचन हैं अतः वह गृहस्थ स्वयं ही वसति (उपाश्रय) का संस्कार करे... तथा विशेष कारण होने पर साधु भी वसति का संस्कार करें... इस प्रकार अनेक दोषवाली संखडि को जानकर साधु वहां जाने का विचार भी न करें... पुरः संखडि याने जन्म, नामकरण, और विवाह आदि तथा मरण आदि के कारण से होने वाली संखडि को पश्चात् संखडि कहतें हैं... अथवा पुरः याने आगे के थोडे हि दिनों में संखडि होगी ऐसा जानकर उन दिनों के आने के पहले हि साधु वहां से विहार करें... अथवा वसति को गृहस्थ हि संस्कृत = संस्कारवाली करें क्योंकि- संखडि पूर्ण हो चुकी है अतः उसकी शेष ग्रहण करने के लिये साधु आयेंगे... अतः सूत्रकार महर्षि कहतें हैं कि- सर्व प्रकार से सभी संखडि में जाने की इच्छा से साधु वहां गमन न करें... ऐसा होने से हि उस भिक्षु याने साधु को संपूर्ण भिक्षुभाव याने सच्ची साधुता प्राप्त होती हैं... अर्थात् भावसाधु सर्व प्रकार से संखडि में जाने का त्याग करें... V सूत्रसार : . ___ प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- साधु को सरस एवं स्वादिष्ट पदार्थ प्राप्त करने की अभिलाषा से संखडी-बडे जीमनवार या प्रीतिभोज में भिक्षा को नहीं जाना चाहिए। उस स्थान में ही नहीं अपितु जहां पर प्रीतिभोज आदि हो रहा हो उस दिशा में भी आहार को नहीं जाना चाहिए। इससे साधु की आहार वृत्ति की कठोरता एवं स्वाद पर विजय की बात सहज ही समझ में आ जाती है। ऐसे आहार को भगवान ने आधाकर्म आदि दोषों से युक्त बताया है। इससे स्पष्ट है कि- साधु यदि ऐसे प्रसंग पर वहां आहार के लिए जाएं तो अप्रासुक एवं अनेषणीय आहार लेना होगा। क्योंकि- अत्यधिक आरम्भ-समारम्भ होने से वह सचित्त आदि पदार्थों के स्पर्श का ध्यान नहीं रख सकता, देने में भी अविधि हो सकती है और साधु को उस दिशा में आता हुआ देखकर कुछ विशिष्ट पदार्थ भी तैयार किए जा सकते हैं या उन्हें साधु के लिए इधर-उधर रखा जा सकता है। अतः साधु को ऐसे प्रसंग पर आहार को नहीं जाना चाहिए।