________________ 562 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन नि.3२४ (चूलिका-२ अध्ययन-3 उच्चार-प्रसवण) उच्चवड सरीराओ उच्चारो पसवइत्ति पासवणं / तं कह आयरमाणस्स होड़ सोही न अइयारो॥ नि.3२५ मुनिना छकायदयावरेण सुत्तभणियंमि ओगासे। उच्चारविउस्सग्गो कायव्वो अप्पमत्तेणं॥ नि.3२६ (चूलिका-२ अध्ययन-४ शब्द) दव्वं संठाणाई भावो वन्नकसिणं स भावो य। दव्वं सद्दपरिणयं भावो उ गुणा य कित्ती य॥ नि.3२७ (चूलिका-२ अध्ययन-५ रूप) दव्वं संठाणाई भावो वन्न कसिणं सभावो य / दव्वं सवपरिणयं भावो उ गुणा य कित्ती य॥ नि.३२८ (चूलिका-२ अध्ययन-६/७ परक्रिया/अन्योऽन्यक्रिया) (गाथार्द्धम्) छकं परइक्किकं तर दन्न 2 माएस 3 कम 4 बहु 5 पहाणे / अन्ने छकं गाथद्धं तं पुण तदन्नमाएसओ चेव // . नि.3२९ जयमाणस्स परो जं करेड़ जयणाए तत्थ अहिगारो। निप्पडिकम्मस्स उ अन्नमन्त्रकरणं अजुत्तं तु / / नि.330 (चूलिका-3 भावना) दव्वं गंधंगतिलाइएसु सीउण्हविसहणाईसु। भावंमि होइ दुविहा पसत्थ तह अप्पसत्था य॥ नि.338 पाणिवहमुसावाए अंदत्तमेहुणपरिग्गहे चेव। कोहे माणे माया लोभे य हवंति अपसत्था / नि.33२ दसणनाणचरिते तववेरग्गे य होइ उ पसत्था / जा य जहा ता य तहा लक्खण वच्छं सलक्खणओ।