________________ 440 2-2-4-1-3 (504) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन वह साधु या साध्वी स्वजाति के शब्दों और परजाति के शब्दों में आसक्त न बने, एवं श्रुत या अश्रुत तथा दृष्ट या अदृष्ट शब्दों और प्रिय शब्दों में आसक्त न बने। उनकी आकांक्षा न करे और उनमें मूर्छित भी न होवे / यही साधु और साध्वी का सम्पूर्ण आचार है और इसी के पालन में उसे सदा संलग्न रहना चाहिए। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. जब देखे कि- यह कथानक कहने का स्थान है, या मान एवं उन्मान याने प्रस्थक एवं नाराच आदि का स्थान है अथवा अश्व आदि के वेग की परीक्षा करनेका स्थान है, या उनके वर्णन-स्वरुप निवेदनका स्थान है... तथा बडे आवाजके साथ या महान् आडंबर के साथ जहां नृत्य-गीत-वाजिंत्र-तंत्री-तल-ताल एवं त्रुटित आदि के साथ नाचगान हो रहा हो ऐसे स्थान हो, तथा सभा या सभा के वर्णन हो रहे स्थान में... उनको देखनेसुनने के लिये साधु वहां न जावें... तथा कलह-झगडे जहां हो रहे हो ऐसे स्थान में भी साधु उनको दखने-सुनने के लिये न जावें... तथा वह साधु या साध्वीजी म. जहां किशोरी कन्या को अलंकारों से अलंकृत करके अश्व-घोडे आदि के उपर बैठाकर परिवार के लोग गीत-नृत्य के साथ मार्ग में ले जा रहें हो, या किसी पुरुष को वध के स्थान में सुभट-सिपाही ले जा रहें हो तब उन्हें देखने-सुनने की इच्छा से साधु वहां न जावें... तथा महान् (बडे) आश्रव याने पाप-कर्मबंध के स्थान जैसे कि- बहुत सारे बैल-गाडी पा रथ या म्लेच्छ लोग या अधम-चांडाल कुल के लोग इकट्ठे हुए हो वहां देखने-सुनने के लिये साधु न जावें... तथा महोत्सव हो रहा हो ऐसे स्थान में बहुत सारे स्त्री-पुरुष-वृद्ध एवं बालक तथा मध्यम उमवाले लोग अलंकारों से अलंकृत होकर नाच-गान कर रहे हो तब उन्हे देखने-सुनने की इच्छा से साधु वहां न जावें... अब सभी सूत्रों के भावार्थ का उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहतें हैं कि- इस लोक में एवं परलोक में होनेवाले अपाय (दुःख) से डरनेवाले साधु एवं साध्वीजी म. मनुष्य आदि ने किये हुए एवं पशु-पक्षियों ने किये हुए शब्द-नाच-गान तथा साक्षात् सुने हुए या नही सुने हुए... तथा साक्षात् दिखे या न दिखे ऐसे नाच-गानके प्रति राग-अनुराग न करें... तथा उनमें आसक्त न होवें... मोह न पावें... या उसके प्रति अतिशय आसक्ति भाव न रखें... क्योंकिऐसा जीवन जीने से ही साधु का साघुपना संपूर्ण होता है... शेष शब्दों-वाक्यों के अर्थ पूर्ववत् जानना चाहिए।